“अस्सलाम अलैकुम व रहमतुल्लाह व बरकातहू” Safar Ki Dua in Hindi जैसे अल्फाज़ से आप लोग गूगल पर सर्च करते होगें। लेकिन आपको सभी सफर दुआ हिंदी में नहीं मिलता होगा। अल्लाह का शुक्र है और आपके लिए खुशखबरी है कि, इस वेबसाइट पर सभी सफर की दुआ मिलने वाला है।
दोस्तों आपको सफर की सभी दुआएं इस लेख में मिलेगा जैसे – सफर से पहले, सफर के दरमियान और सफर के बाद, आइए जानते हैं. सफर के आदाब से मुतालिक FAQs+ आर्टिकल के सबसे आखिर में लिखा गया है.
सफर में रवानगी से पहले 2 रक्अत नफ़्ल की नमाज़ पढ़ना चाहिए। आपने फरमाया है कि, “जो मुसाफ़िर अपने सफर में दुनिया की बातों से दिल हटाकर अल्लाह की तरफ़ ध्यान रखेगा तथा उसकी याद में लगा रहेगा। तथा उसके साथ फरिश्ता रहता है। जो यात्री बेकार की बातों तथा बेहूदा कामों में लगा रहता है । उसके साथ शैतान रहता है।”
सफर करने से पहले, सफर की नियत करना इस्लाम में एक सही अमल माना गया है. इसके अलावा अपनों से मुलाकात करना भी सुन्नत माना गया है.
जब सफ़र का इरादा करे लें, तो यह दुआ पढ़ें
اللَّهُمَّ بَكَ أَصُولُ وَبِكَ أَجُولُ وَبِكَ أَسِيرُ
अल्लाहुम-म बि-क असूलु व बि-क अहूलु व बि-क असीरु०
तर्जुमा – अल्लाह मैं तेरी मदद से ही हमला करता हूं, तेरी ही मदद से उनको दूर करने की तद्-बीर करता हूं तथा तेरी ही मदद से चलता हूं।
Safar ki Dua in Arabic
Safar Par Jane Ki Dua: जब किसी गाड़ी या कार या ट्रेन या हवाई जहाज के पायदान पर कदम रखे तो बिस्मिल्लाह कहे। जब जानवर की पीठ या सीट पर बैठ जाए तो अल्हम्दुलिल्लाह कहें। उसके बाद नीचे लिखा आयतों को पढ़ें।
سُبْحَانَ الَّذِي سَخَّرَ لَنَا هَـٰذَا وَمَا كُنَّا لَهُ مُقْرِنِينَ وَإِنَّا إِلَىٰ رَبِّنَا لَمُنقَلِبُونَ
Safar ki Dua In English
Subha Nal Lazi Saqaralana Haaza Wama Kunna Lahu Muqrineen Wa Inna Ilaa Rabbina Lamun Qaliboon।
सफर की दुआ इन हिंदी में पढ़िये
सुब्हानल्लजी सख्ख-र लाना हाज़ा व मा कुन्ना लहू मुकि्रनीन व इन्ना इला रब्बिना ल-मुन्क़लिबून।
सफर की दुआ का तर्जुमा
अल्लाह पाक है, जिसने उसको हमारे कब्जे में दे दिया तथा हम उसकी क़ुदरत के बगै़र इसे कब्जे में करने वाले ना थे तथा बिला शुब्हा हमको अपने रब की तरफ़ जाना है।
सफर की दुआ पढ़ने के बाद तीन, बार अल्हम्दु लिल्लाह तथा तीन बार अल्लाह हु अकबर कहें। उसके बाद यह दुआ पढ़ें:
سُبْحَانَكَ إِنِّي ظَلَمْتُ نَفْسِي فَاغْفِرْ لِي فَإِنَّهُ لَا يَغْفِرُ الذُّنوُبَ إِلَّا أَنْتَ
सुब्हा-न-क इन्नी ज़लम्तु नफ़्सी फ़गि्फ़र ली फ़ इन-न हू ला यगि्फ़रूज़्जुनू-ब इल्ला अन-त।
तर्जुमा – ऐ अल्लाह। तू पाक है। बेशक मैंने अपने नफ़्स पर जुल्म किया, तू मुझे बख्श दे, क्योंकि सिर्फ़ तू ही गुनाह बख्शता है.
सफर के दरमियान की दुआ
जब सफ़र में रवाना होने लगे तो यह दुआ पढ़ें:
اللَّهُمَّ إِنَّا نَسْأَلُكَ فِي سَفَرِنَا هَذَا الْبِرَّ وَالتَّقْوَى وَمِنَ الْعَمَلِ مَا تَرْضَى اللَّهُمَّ هَوِّنْ عَلَيْنَا سَفَرَنَا هَذَا وَاطْوِ لَنَا بُعْدَهُ اللَّهُمَّ أَنْتَ الصَّاحِبُ فِي السَّفَرِ وَالْخَلِيفَةُ فِي الْأَهْلِ اللَّهُمَّ إِنِّي أَعُوذُ بِكَ مِنْ وَعْثَاءِ السَّفَرِ وَكَآبَةِ الْمَنْظَرِ وَسُوءِ الْمُنْقَلَبِ فِي الْمَالِ وَالْأَهْلِ وَأَعُوذُ بِكَ مِنَ الْحُورِ بَعْدَ الْكُورِ وَدَعْوَةِ الْمَظْلُومِ
अल्लाहुम-म इन्ना नस् अलु-क फ़ी स-फ़-रिना हाज़ल बिर-र वत्तक़्वा व मिनल अ-म लि मा तर्ज़ा अल्लाहुम-म हव्विन अलैना स-फ़-र-ना हाजा़ वत्वि-ल-ना बुअ् द हू अल्लाहुम-म अन्तस्साहिबु फ़िस्स-फ़-रि वल ख़लीफ़तु फि़ल अहिल अल्लाहुम-म इन्नी अअूज़ुबि-क मिंव-वअ् साइस्स-फ़ रि व का ब ति ल मन्ज़रि व सूइल मुन्क़-ल-बि फ़िल मालि वल अहि्ल व अअूज़ुबि-क मिनल हौरि बअ दल कौरि व दअ वतिल मज़्लूम।
तर्जुमा
ऐ अल्लाह। हम तुझ से इस सफ़र में नेकी तथा परहेज़गारी का सवाल करते हैं तथा हम उन आमाल का सवाल करते हैं जिनसे आप राजी हों।
ऐ अल्लाह। हमारे इस सफ़र को हम पर आसान फ़रमा दे तथा इसका रास्ता जल्दी जल्दी तय करा।
ऐ अल्लाह, तू स़फर में हमारा साथी है तथा हमारे पीछे घर बार का कारसाज़ है।
ऐ अल्लाह, मैं तेरी पनाह चाहता हूं सफ़र की मशक्क़त तथा घर बार में बुरी वारसी से तथा बुरे हालात के देखने से तथा बनने के बाद बिगड़ने से तथा मज़्लूम की बद्-दुआ से।
किसी मंज़िल यानी रेलवे या बस स्टेशन पर उतरे तो यह दुआ पढ़ें
أَعُوذُ بِكَلِمَاتِ اللَّهِ التَّامَّاتِ مِنْ شَرِّ مَا خَلَقَ
अअूज़ु बिकलिमातिल्लाहित्ताम्माति मिन शर्रि मा ख-लक०
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तर्जुमा – अल्लाह के पूरे कलिमात के वास्ते से अल्लाह की बनना चाहता हूं उसकी मख़्लूक़ के शर से।
किसी शहर या बस्ती में दाखिल होने लगे, तो तीन बार पढ़े
اللَّهُمَّ بَارِكْ لَنَا فِيهَا
अल्लाहुम-म बारिक लना फ़ीहा ०
तर्जुमा ऐ अल्लाह, तू हमें इस में बरकत दें।
फिर यह पढ़े
اللَّهُمَّ ارْزُقْنَا جِنَاهَا وَحَبِّبْنَا إِلَى أَهْلِهَا وَحَبِّبْ صَالِحِي أَهْلِهَا إِلَيْنَا
अल्लाहुम-मर्ज़ुक़्ना जना हा व हब्बिब्ना इला अहिल हा व हब्बिब सालिही अहिलहा इलैना ०
तर्जुमा – ऐ अल्लाह, तो हमें इसके मेवे नसीब फ़रमा तथा यहां के बाशिंदों के दिलों में हमारी मोहब्बत तथा यहां के नेक लोगों की मोहब्बत हमारे दिलों में पैदा फ़रमा दें।
जब किसी को रुख़्सत करे तो यह पढ़े
أَسْتَوْدِعِكُمُ اللَّهَ الَّذِي لَا تَضِيعُ وَدَائِعُهُ
अस्त्तौदिअुल्ला-ह दी-न-क व अ मा-न-त-क व ख़्वाती-म
अ-म-लि-क०।
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Conclusion Points
अभी तक आपने सफर की अलग-अलग दुआओं को पढ़ा. मेरा मशवरा होगा कि सबसे इन दुआओं को याद करें. याद करने के बाद किसी हाफिज ए कुरान या इस्लामिक जानकार को यह दुआ सुनाएं.
सुनाने से आपको सबसे बड़ा फायदा होगा कि तलफ्फुज बेहतर हो जाएगा. हिंदी वर्णमाला में ऐसे सभी लेटर नहीं है जिससे कि, अरबी के शब्दों को हंड्रेड परसेंट सही से लिखा जा सकें.
सफ़र निकलने से पहले नियत करें और 2 रकात नफिल नमाज अदा करें. सफर के दौरान अल्लाह का जिक्र करें. मुझे पूरी उम्मीद है कि, आपको सफर की दुआ से मुतालिक यह आर्टिकल पसंद आया होगा. अल्लाह हाफ़िज़.
FAQs+
आपने अभी तक Safar Ki Dua पढ़ा, मेरे हिसाब से आपको सफर के आदाब से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर को जान लेना चाहिए.
प्रश्न – इस्लाम में सफर करना किस दिन और किस वक्त बेहतर माना गया है?
उत्तर – हदीस के मुताबिक, जुमेरात के दिन सफर को पसंदीदा अमल माना गया है. सुबह सवेरे सफर करना मुबारक माना जाता है. ज़ोहर की नमाज़ के बाद सफर करना भी नबी करीम सल्लल लाहु अलैहि वसल्लम से साबित है.
प्रश्न – सफर अकेले करना चाहिए या किसी के साथ सफर करना चाहिए?
उत्तर – Hadees के मुताबिक सफर बिना मजबूरी के अकेले नहीं करना चाहिए. किसी जानने वाले के साथ में सफर करना चाहिए. उनमें से जो ज्यादा जानकार हो उसे सफर का अमीर बनाना चाहिए.
प्रश्न – सफर में निकलने से पहले कौन सी नमाज़ पढ़ना चाहिए?
उत्तर – सफर के लिए घर से निकलते वक्त पहले 2 रकात नफ्ल नमाज़ पढ़ना चाहिए. नबी करीम सल्लल लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया है कि, घर से निकलते वक्त दो रकात़ नमाज पढ़ लो तो, सफर की तमाम ना पसंदीदा बातों से महफ़ूज़ रहोगें.
प्रश्न – क्या इस्लाम में बीवी के साथ सफर करना जायज है?
उत्तर – हदीस के मुताबिक, सफर बीवी के साथ करना मसनून माना गया है. क्योंकि सफर करने वाले मर्द और औरत की इससे नफ्स की भी हिफाजत रहती है. शर्त यह है कि, बीवी को सफर में ले जाने में कोई दुश्वारियां या उज्र ना हो.
प्रश्न – इस्लाम में सफर कितने किलोमीटर को माना जाता है?
उत्तर – यूं तो Quran में सफर कितने किलोमीटर को कहा गया है नहीं बताया गया है. कुछ हदीस में सफर के लिए कम से कम दूरी 60 किलोमीटर बताया गया है. कुछ जानकार बताते हैं कि 80 किलोमीटर की दूरी हो तो तभी सफल माना जा सकता है.
कुछ इस्लामिक जानकार कहते हैं कि 2 नमाज़ो के वक्त के बीच में जो दूरी तय की जाएगी, उसे सफर कहा जा सकता है.
प्रश्न – क्या औरत को अकेले सफर करना चाहिए?
उत्तर – बिना मजबूरी के औरत को अकेले सफर करना इस्लाम में मना किया गया है. औरत के लिए कहा गया है कि, अपने मेहरम के साथ सफर करें तो बेहतर है.
प्रश्न – क्या सफर करने वाले की दुआ जल्दी कबूल होती है?
उत्तर – अगर दिन के तरीके से सफर की जाए तो सफर करने वाले की दुआ जल्दी कबूल होती है.
प्रश्न – क्या इस्लाम में सफर से जल्दी लौटने के लिए कहा गया है?
उत्तर – इस्लाम में सफ़र से जल्दी लौटने के लिए कहा गया है. अगर काम पूरा हो जाए तो बिना वजह नहीं रुकना है और उस सफर करने वाले आदमी को जल्दी घर वापस आ जाना चाहिए.
प्रश्न – क्या सफर से लौटते समय घर वालों के लिए तोहफा नाना जरूरी है?
उत्तर – सफर से लौटते समय घरवालों के लिए तोहफा लेकर लौटना चाहिए. बशर्ते की सफर करने वाले आदमी के पास इसके लिए पर्याप्त रुपया हो.
प्रश्न – कितने लोगों को एक साथ सफर करना चाहिए?
उत्तर – हदीस के मुताबिक कम से कम 4 लोगों का एक साथ सफर करना अफजल माना गया है. जमात में से एक आदमी जो ज्यादा जानता हो उसे अमीर बनाना चाहिए.
प्रश्न – सफर के दौरान, अगर रात को होने लगे तो कौन सी दुआ पढ़नी चाहिए?
उत्तर – सफर के दौरान जब रात होने लगे, तो यह दुआ पढ़ना चाहिए.
يا أرض ، ربي وربك الله، أعوذ بك من شرك وشر ما فيك ، وشر ما خلق فيك، وشر ما يدب عليك أعوذ بالله من شر أسد وأسود، ومن الحية والعقرب، ومن ساكن البلد، ومن والد وما ولد
या अरद, रब्बी वा रब्बुक-इल्लाहु, औजु बिलही मिन शारिकी वा शारी मा फिकी, व शरी मा खुलिका फिकी, वा शरी मा यदीब्बु अलैकी; आउधु बिल्लाहि मिन शार्री असदीन व असवदीन, वा मीनल-हय्याति वल-‘अकराबी, वा मिन सकीनिल-बलदी, वा मिन वलीदीन वा मा वलाद
तर्जुमा: हे भूमि, मेरा रब और तेरा रब अल्लाह है, मैं शरण चाहता हूँ उसी में तुम्हारी बुराइयों से, जो कुछ तुम रखते हो उसकी बुराइयाँ, जो कुछ तुम में पैदा किया गया है उसकी बुराइयाँ, और जो कुछ तुम पर चलता है उसकी बुराइयाँ। मैं शेरों, काले साँपों, बिच्छुओं और अज़मत के बाशिन्दों से अल्लाह की पनाह माँगता हूँ। जगह, और माता-पिता (यानी, शैतान) और उनकी संतान से जो एक बस्ती में रहते हैं (यानी, शैतानों में से सहायक)।”
Asslamu alaiqum bhai I am Muhammad Hashim from Rajasthan i am a small blogger of shikshaportal.in so i want to connect with u please contact sir