नारको टेस्ट क्यों किया जाता है और किन लोगों पर किया जाता है? शातिर मुजरिम जो पुलिस का मार खाने के बाद भी सच्चाई ना उगले, उस पर यह टेस्ट किया जाता है. आइए पूरे विस्तार से जानते हैं.
अक्सर लोगों का प्रश्न होता है कि दुनिया में कोई झूठ पकड़ने वाली मशीन है क्या? आपको इस प्रश्न का उत्तर इस आर्टिकल में मिल सकता है.
शुरुआत नारको टेस्ट के फुल फॉर्म से करते हैं. NARCO test ka full form Narco Analysis Test होता है. NARCO test को Narco synthesis sodium amytal interview या amobarbital interview या amytal interview कहा जाता है.
- NARCO – Narcotics Commission
- NARCO – Normal Adventuresome Reliable Comforting Opinionated
- NARCO – National Rear Commodore
- NARCO – North American Railcar Operators Association.
नार्को टेस्ट किस पर किया जाता है?
NARCO टेस्ट क्या होता है? पहले इसका मतलब समझिए. नार्को टेस्ट का इस्तेमाल अपराधिक व्यक्तियों के मन व दिमाग से सच बाहर निकलवाने के लिए जाता है. अब आप सोच रहे होंगे कि सच निकलवाने के लिए अन्य तरीके भी हैं लेकिन इन तरीकों का उपयोग क्यों होता है.
बड़े शातिर अपराधी एवं आतंकवादी, पुलिस की पिटाई होने के बाद भी वह सच नहीं बताते हैं. ऐसे में जांच एजेंसी के पास आखिरी विकल्प यही होता है इसके लिए पॉलीग्राफ, लाईडिटेक्टर टेस्ट और ब्रेन मैपिंग टेस्ट भी किया जाता है.
यह परीक्षण अधिकतर आपराधिक घटनाओं में सच की गुत्थी सुलझाजाने के लिए किया जाता है. यह टेस्ट इतना प्रभावशाली होता है कि, 1% से भी कम चांस होता है कि कोई व्यक्ति इस टेस्ट के दौरान झूठ बोल ले. इस टेस्ट में जो इंजेक्शन दिया जाता है उसका नाम ट्रुथ सीरम इंजेक्शन है.
इस टेस्ट में इथेनाल, सोडियम पेंटोथाल, बार्बिचरेटस, टेपाजमेन आदि ड्रग्स प्रयोग किया जाता है.
नार्को टेस्ट किस पर किया जाता है?
यह टेस्ट पहले सिर्फ साइकोलॉजिकल डिसऑर्डर व्यक्तियों पर किया जाता था. किंतु यह टेस्ट अब अपराधियों के लिए ज्यादा पॉपुलर है.
कोर्ट के ऑर्डर के हिसाब से ही अपराधियों पर यह टेस्ट किया जाता है. अपराधी और आतंकवादियों से सच उगलवाने के लिए यह टेस्ट किया जाता है.
नार्को टेस्ट कैसे किया जाता है?
नार्को टेस्ट करने के लिए व्यक्ति को पहले बेहोश किया जाता है. जिससे इंसान सेमी कान्सीयस स्थिति मे पहुंच जाता है. अगर आसान भाषा में कहा जाए तो सेमी कॉन्शियस का मतलब होता है, व्यक्ति ना तो पूरा होस में होता है व ना ही पूरी तरह बेहोश होता है.
ऐसे कंडीशन मे इंसान चाह कर भी झूठ नहीं बोल सकता है. शायद आप एक बात पहले से ही जानते होंगे हम आप को झूठ बोलने के लिए कल्पनाओं का सहारा लेना पड़ता है.
जब किसी व्यक्ति पर यह सब केमिकल का इंजेक्शन दे दिया जाता है तो ऐसे में वह कल्पना नहीं कर सकता है. जब वह अपने मस्तिष्क में कल्पना नहीं कर पाएंगे तो ऐसी स्थिति में झूठ बोलना उसके लिए लगभग नामुमकिन होगा.
आपने यह भी देखा होगा जो लोग दारू पीकर के बेहोशी में रहते हैं. वह भी कल्पना नहीं कर पाते हैं इसलिए उसके मुंह से कभी कभार सच निकल जाता है.
अपराधी या कोई अन्य व्यक्ति के आसपास जो भी घटनाएं होती हैं वह उनके दिमाग के कल्पनाओं में होती हैं. अगर कोई व्यक्ति बेहोश ना हो तो अपनी कल्पनाओं को घुमा फिरा करके गलत तरीके से बता सकता है.
इस टेस्ट के दौरान व्यक्ति का कल्पना पूरी तरह खत्म हो जाता है यही कारण है कि वह चाहकर भी झूठ नहीं बोल सकता है.
नार्को टेस्ट प्रक्रिया
यह एक आम टेस्ट नहीं है. सभी व्यक्तियों पर तो नहीं किया जाता है. लेकिन जिस पर भी यह किया जाता है, पहले उसकी उम्र और हेल्थ का चेकअप किया जाता है. विशेषज्ञ तय करते हैं कि कौन सा केमिकल का प्रयोग होगा.
आपको यह सच्चाई जान लेना चाहिए इस टेस्ट का बहुत बुरा प्रभाव ब्रेन पर पड़ सकता है. यही नहीं अगर गलत या ज्यादा केमिकल का प्रयोग किया जाए तो पेशेंट की मौत भी हो सकती है.
यही कारण है कि यह टेस्ट करने वाले विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम घन अध्ययन करती है कि अपराधी पर कौन सा केमिकल का प्रयोग किया जाए जिससे उसके स्वास्थ्य पर ज्यादा विपरीत प्रभाव ना पड़े.
इसके लिए दो मशीन का प्रयोग किया जाता है और यह दोनों ही मशीनों को पेशेंट के शरीर के साथ कनेक्ट किया जाता है.
क्योकि अगर दवाई दें दिया जाए तो इंसान की मौत हो सकती है या फिर उसके दिमाग पर बुरा प्रभाव पड़ने आशंका रह जाती है. इस टेस्ट में मुख्य तौर पर दो मशीनों का उपयोग होता है जिनके नाम निम्नलिखित हैं.
- पालीग्राफ मशीन
- ब्रेन मेपिंग मशीन.
पालीग्राफ मशीन – पालिग्राफ मशीन नार्को टेस्ट किए जाने आदमी का ब्लड प्रेशर, नब्ज, साँसो एंव हृदय की गति व बॉडी मे होने वाली गतिविधियों को रिकार्ड एंव दर्शाता है.
ब्रेन मेपिंग मशीन – यह मशीन दिमाग में चलने वाले सभी हलचल को कैद कर लेता है. विशेषज्ञ अपने कंप्यूटर में उसके दिमाग की हलचल को एनालिसिस करते रहते हैं.
विशेषज्ञ डॉक्टर सब कुछ सेटअप करने के बाद पेशेंट पर अपना नजर बनाए रखते हैं. डॉक्टर को जैसे ही लगता है कि अब पेशेंट बेहोश होने के कगार पर है उसे कुछ आम सवाल पूछे जाते हैं.
आपका नाम क्या है और आपका घर कहां है? इन सब प्रश्नों पूछने का एक ही मतलब है कि, डॉक्टर यह पता लगाना चाहते हैं कि पेशेंट अभी सेमी कॉन्शियस स्टेट में आया है या नहीं.
धीरे धीरे अपराधी से वह सवाल पुछ लिया जाता है जो जानने के लिए नार्को किया गया था. इस तरह नार्को के जरिये सत्य का पता बहुत आसानी से लगाया जा सकता है.
नारको टेस्ट कराने में कितना रुपया लगता है?
अभी तक की जानकारी के मुताबिक यह टेस्ट आम लोगों के लिए उपलब्ध नहीं है. यह टेस्ट पहले मुंबई में होता था अब रोहिणी स्थित डॉ. बाबा साहेब आंबेडकर अस्पताल में शुरू होने वाली है.
अभी तक कोर्ट के आदेश के मुताबिक ही नारको टेस्ट किया जाता है. अगर इसके संबंधित आपके पास भी कोई जानकारी हो तो कमेंट बॉक्स में जरूर लिखिए. ताकि बाकी पाठकों को भी इससे संबंधित जानकारी पता चल सकें.
Conclusion Points
नार्को टेस्ट एक जांच उपकरण है जिसका इस्तेमाल झूठ का पता लगाने के लिए किया जाता है। यह झूठ का पता लगाने का एक रूप है जिसके लिए परीक्षण किए जाने वाले व्यक्ति को ऐसी दवा लेने की आवश्यकता होती है जो बेहोश करने की क्रिया और मतिभ्रम का कारण बनती है।
NARCO टेस्ट का इस्तेमाल किसी के अपराध, उसके निजी जीवन या किसी अन्य विषय में उसका संलिप्तता(Involvement) के बारे में झूठ बोलने के लिए किया जा सकता है।
नार्को टेस्ट इस सिद्धांत पर आधारित है कि जब कोई झूठ बोल रहा होता है, तो उसका शरीर सच बोलने की तुलना में अलग तरह से प्रतिक्रिया करेगा।
किसी को ऐसी दवाएं देकर जो उन्हें नींद और भ्रमित महसूस कराएंगी, जांचकर्ता यह देख सकते हैं कि जिस व्यक्ति का परीक्षण किया जा रहा है, वह अलग तरह से प्रतिक्रिया करके झूठ बोल रहा है, अगर वे सच कह रहे थे।