मुद्रा की परिभाषा क्या है? क्या आप यही सच कर रहे हैं? अगर हां तो आप एक अच्छे आर्टिकल तक पहुंच चुके हैं। इस आर्टिकल के माध्यम से आपको परिभाषा के अलावा महत्व, कार्य, प्रकार एवं अनेक विश्वसनीय जानकारी दिया जाएगा।
मुद्रा को इंग्लिश में currency कहते हैं। भारत का आधिकारिक रुपया है जिसे आप नोट और सिक्के के तौर पर देखे होंग। हर देश की अलग-अलग करेंसी होती है और हर देश के करेंसी का वैल्यू भी अलग होता है। बिना करेंसी के modern economy की कल्पना भी नहीं की जा सकती है।
- मुद्रा (Currency, करेंसी) – मुद्रा पैसे या धन का वह रूप होता है जिसका उपयोग दैनिक जीवन में क्रय और विक्रय के लिए किया जाता है।
- सिक्के – मुद्रा में सिक्के एक महत्वपूर्ण भाग होते हैं, जो छोटे धनराशि की मान्यता देने के लिए प्रयुक्त होते हैं।
- काग़ज़ के नोट – मुद्रा का एक और प्रमुख रूप होते हैं काग़ज़ के नोट, जो बड़े धनराशि की मान्यता देने के लिए प्रयुक्त होते हैं।
- देश की सरकारी व्यवस्था – आमतौर पर किसी देश में प्रयोग की जाने वाली मुद्रा वह मुद्रा होती है जो उस देश की सरकारी व्यवस्था द्वारा जारी की जाती है और उसका प्रबंधन किया जाता है।
- उदाहरण – मिसाल के तौर पर, भारत में रुपया और पैसा मुद्रा के उदाहरण हैं, जो भारत की सरकार द्वारा जारी की जाती हैं और इसका प्रबंधन किया जाता है।
मुद्रा की परिभाषा
करेंसी ऐसी वस्तु है, जो माल और सेवाओं को खरीदने के लिए तथा ऋणों और करों के भुगतान के लिए स्वीकार किया जाता है।
मुद्रा रुपया पैसा या धन के उस रूप को कहते हैं जिससे हम रोजाना की जिंदगी में खरीद बिक्री करते हैं।
इसमें कागज के नोट और सिक्के भी आते हैं। किसी भी देश में इस्तेमाल की जाने वाली करेंसी उस देश के सरकार व्यवस्था के अंतर्गत बनती है।
मुद्रा के प्रकार
मुद्रा उदय युग से ही अलग-अलग रूपों में इस्तेमाल होती आई है। अगर हम मुद्रा के तरक्की के हिस्ट्री का अध्ययन करें तो हमें पता चलेगा कि शुरू में आम चीजें मुद्रा के रुप में इस्तेमाल की जाती थी जैसे हड्डियां, खाल। लेकिन बाद में वस्तु मुद्रा के रूप में ही नहीं बल्कि स्थान में भी बदलाव हुआ और उसके स्थान पर धातु मुद्रा आ गया।
अब धातु मुद्रा का जगह पेपर करेंसी और क्रेडिट मनी ने ले लिया है। मौजूदा दौर में दुनिया के अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग तरह की मुद्राएं इस्तेमाल की जाती है।
मुद्रा कई प्रकार की होती है, और ये प्रकार देशों और उनकी आर्थिक व्यवस्थाओं के आधार पर विभिन्न होते हैं। मुद्राओं के प्रमुख प्रकार निम्नलिखित होते हैं:
करेंसी (Currency): यह सामान्य धातुओं या कागज़ से बनी होती है और देश की सरकार द्वारा जारी की जाती है। इसमें सिक्के और कागज़ के नोट शामिल होते हैं।
डिजिटल मुद्रा (Digital Currency): डिजिटल मुद्रा इंटरनेट और कम्प्यूटरीकृत फॉर्म में होती है और इसका प्रबंधन इलेक्ट्रॉनिक रूप से किया जाता है। क्रिप्टोकरेंसी (Cryptocurrency) जैसे उदाहरण इसमें शामिल होते हैं.
बार्टर (Barter): बार्टर में मुद्रा का उपयोग नहीं होता, बल्कि वस्त्र, ग्राहकर्म, या अन्य माल वस्त्र के विनिमय में होता है।
फॉरेक्स (Forex): यह विदेशी मुद्रा के लिए वित्तीय बाजार को सूचित करने वाले मुद्रा बाजार की व्यवस्था के लिए होती है, जिसमें दुनियाभर की मुद्राएँ खरीदी और बेची जाती हैं.
मुद्रा स्वाप (Currency Swap): यह एक निश्चित दौरान के लिए दो प्रकार की मुद्रा के बीच का विनिमय होता है, आमतौर से दो विदेशी मुद्राओं के बीच की कीमतों की दृष्टि से किया जाता है।
मुद्रा के कार्य क्या है?
मौजूदा दौर में हम करेंसी के बिना एक दिन भी नहीं बिता सकते हैं क्योंकि करेंसी के जरिया से ही किये जाने वाले कामों के वजह से हम अपनी जिंदगी को अच्छे ढंग से बिताते हैं।
मानव सभ्यता के प्रगति मे करेंसी के कामों का बहुत ज्यादा महत्व है। Professor David Kinley के अनुसार मुद्रा के कार्यो को तीन भाग में बांटा गया है।
प्राथमिक कार्य
प्राथमिक कामों में करेंसी के उन कामों को रखा गया है जो हर वक्त हर देश में करेंसी के जरिया होता है इसके अंतर्गत दो कामों को सम्मिलित किया गया है।
विनिमय का माध्यम
यह करेंसी का अहम काम है। लेन देन को सुविधाजनक बनाता है और यह इसकी प्रमुख पहचान है। हर तरह का लेन-देन मुद्रा के जरिया से ही होता है। मुद्रा के बिना किसी प्रकार के लेन देन को मुमकिन नहीं बना सकते हैं।
जैसे हम अगर किसी चीज के बदले कोई चीज ना लेना चाहे तो मुद्रा ही है जिसके जरिया से हम व्यापारिक गतिविधियां कर सकते हैं क्योंकि वस्तु विनिमय प्रणाली के तहत एक चीज को दूसरे चीज से तभी बदला जा सकता है.
जब दोनों तरफ से होने वाले लेनदेन की कीमत बराबर हो और दोनों की मांग एक हो। इन्हीं प्रॉब्लम को करेंसी खत्म करता है और दोनों माध्यम के विनिमय को मुमकिन बनाता है। इसके जरिए दोनों तरफ की ना सिर्फ प्रॉब्लम दूर होती है बल्कि चीजों तथा सेवाओं के लेनदेन में भी आसानी होती है।
मूल्य का मापक
मुद्रा का यह दूसरा महत्वपूर्ण काम है। मुद्रा के जरिया ही चीजों के कीमत का निर्धारण मुमकिन होता है। चीजों और सेवा का कीमत करेंसी से मापने पर विनिमय सरल हो जाता है।
मुद्रा से राष्ट्र आय की गणना भी सरल होता है। वह विधि उत्पादन तथा आय विधि के जरिया देश की राष्ट्रीय आय करेंसी के रूप में आसानी से की जा सकती है।
गौण कार्य
गौण कार्य वह काम है जो प्राथमिक कामों की मदद से की जाती है। जब अर्थव्यवस्था का विकास होता है तो सहायक कामों की भूमिका भी ज्यादा हो जाता है। सहायक कार्यों में नीचे दिए गए कामों को सम्मिलित किया गया है।
स्थगित भुगतानों का मान
करेंसी के इस काम में हम उस भुगतान को सम्मिलित करते हैं जिसका भुगतान मौजूदा दौर में ना करके फ्यूचर के लिए छोड़ दिया जाता है ऋण भुगतान भी इसमें शामिल है।
मूल्य का संचय
जब चीजों का विनिमय प्रणाली मशहूर था उस वक्त सिर्फ चीजों से आपस में विनिमय कर सकते थे लेकिन चीजों को संचित नहीं कर सकते थे। लेकिन अब अगर आपको रुपया खर्च करने का मन ना हो तो आप उस रुपया को संचित करके भी रख सकते हैं।
मूल्य का हस्तांतरण
करेंसी के जरिया कीमत का हस्तांतरण सरलता पूर्वक हो जाता है। करेंसी मे सामान्य स्वीकृति और तरलता का गुण है। इस वजह से इसको हम सफलतापूर्वक हस्तांतरित कर सकते हैं।
- आकस्मिक कार्य
देश के आर्थिक विकास के साथ आकास्मिक कामों की भूमिका बढ़ जाती है। आकास्मिक कामों के अंतर्गत निम्नलिखित कामों को सम्मिलित किया गया है।
- अधिकतम संतुष्टि
जब एक व्यक्ति अपने उपयोग की वस्तुएं और सेवाएं मुद्रा से खरीदता है तो उससे संतुष्टि प्राप्त होता है। इसी तरह उत्पादक भी ज्यादा फायदा हासिल करता है।
- राष्ट्रीय आय का वितरण
राष्ट्रीय आय का वितरण भी मुद्रा के जरिया बहुत सरलतापूर्वक हो जाता है हर साधन को उसकी उत्पादकता के बराबर मूल्य देकर राष्ट्रीय आय का वितरण कर सकते हैं।
- पूंजी की तरलता में वृद्धि
वस्तु विनिमय प्रणाली के अंतर्गत वस्तुओं में तरलता का गुण नहीं था लेकिन मुद्रा में सामान्य स्वीकृति के वजह से मुद्रा हमारी पूंजी को तरल बनाए रख सकती है।
- साख का आधार
वस्तु विनिमय प्रणाली के अंतर्गत साख का निर्माण भी संभव नहीं था लेकिन जब से करेंसी प्रचलित हुआ है करेंसी के जरिया हम साख का निर्माण भी करते हैं।
- शोधन क्षमता की गारंटी
शोधन क्षमता भी मुद्रा का एक कार्य है। यह किसी संस्था और व्यक्ति की शोधन क्षमता की गारंटी देता है हर व्यक्ति और संस्था को अपनी शोधन क्षमता की गारंटी कायम रखने के लिए अपने पास कुछ करेंसी रखनी ही होती है और अगर उस संस्था और व्यक्ति के पास करेंसी ना हो तो उस व्यक्ति या संस्था को दीवालिया करार दे दिया जाता है।
मुद्रा का महत्व
- बाजार व्यवस्था की धुरी
- आर्थिक विकास का मापक
- अर्थव्यवस्था की बचतों के निवेश परिवर्तन
- श्रम विभाजन और विशिष्टकरण
- आर्थिक जीवन में स्वतंत्रता
- सामाजिक प्रतिष्ठा का आधार
मुद्रा की चलन गति
मुद्रा की चलन गति का मतलब है कि एक इकाई के जरिया एक साल में कितनी बार चीजें खरीदी जाती है। मुद्रा की चलन गति में हम अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए करेंसी की जरूरत होती है। इसी वजह से हम ज्यादा करेंसी की मांग करते हैं।
करेंसी मे सामान्य स्वीकार का गुण है अगर किसी चीज में सामान्य स्वीकार का गुण नहीं है तो हम उसको करेंसी नहीं कह सकते और उसे करेंसी के रूप में नहीं चला सकते इसलिए हमारे लेनदेन करने में उस करेंसी की कोई जरूरत नहीं होगी।
इसतरह करेंसी के मतलब से कोई भी चीज सामान्य स्वीकार के साथ आदान प्रदान या कर्ज चुकाने में मदद करती हो तो उसे मुद्रा कहा जा सकता है।
अंत में, मुद्रा अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह कई कार्य करता है, जैसे लोगों को सामान और सेवाओं को खरीदने और बेचने, संपत्ति को स्टोर करने और खाते की इकाई के रूप में कार्य करने की अनुमति देता है।
अलग-अलग देशों की अपनी-अपनी मुद्राएं होती हैं, जो अलग-अलग रूपों में आती हैं जैसे सिक्के, नोट, कैश और डिजिटल मनी। हालांकि मुद्रा आर्थिक गतिविधि के लिए आवश्यक है, लेकिन इसकी कमियां भी हैं – वित्तीय अस्थिरता पैदा करने के लिए इसे नकली या अन्यथा हेरफेर किया जा सकता है।
Conclusion Points
मुद्रा ऐसी वस्तु है जो हमारे जीवन को सरल और सुविधाजनक बनाती है।आज के दौर में मुद्रा के बिना एक दिन भी बिताने की कल्पना नहीं कर सकते हैं। एक तरफ जहां मुद्रा हमारे लिए सबसे उपयोगी है दूसरे तरफ इसके कुछ दोष भी है।
भारत का मुद्रा रुपया है, उसी प्रकार अमेरिका का मुद्रा डॉलर है। दोनों की वैल्यू अलग होती है। इस प्रकार दुनिया के हर देश का कोई ना कोई ई होता है और हर किसी का वैल्यू अलग होता है।