Kulhaiya Matrimonial को गूगल पर खोज रहे हैं? आप अपने वेबसाइट तक पहुंच चुके हैं। कुल्हैया मुस्लिम बिरादरी की शादी विवाह के रीति-रिवाजों से आप रूबरू हो सकते हैं।
कुल्हैया शादी-विवाह समारोह के स्टेप बाय स्टेप समझने या जाने की चाहत रखते हैं तो आपके लिए यह एक अनोखा आर्टिकल है। लेखक के तौर पर आप पाठकों से अनुरोध करता हूं कि, इस लेख का मकसद लोगों तक जानकारी पहुंचाना है। इस जानकारी को आप कानून नहीं मान लें। आइए अब विस्तार से बात करते हैं।
Kulhaiya Muslims Marriage Ceremony समझाने के लिए इस लेख को कई भागों में बांटा गया है। थोड़ा लंबा है लेकिन अगर आप पढ़ेंगे तो आपको इंटरेस्ट आएगा।
कुल्हैया मुसलमानों में निकाह इस्लामी इस्लामी शरीयत के अनुसार होता है लेकिन इस विवाह में कुछ ऐसे रीति रिवाज व
रस्म है, जो बाकी मुसलमानों से बिल्कुल अलग है। अभी भी 99% शादी अरेंज मैरिज होता है। नीचे लिखे गए डिस्क्रिप्शन अरेंज मैरिज का है।
शादी का प्रपोजल कैसे दिया जाता है?
आज भी रिश्ते की पहल या रिश्ते का प्रस्ताव लड़के वाले को भी देना होता है। लड़की वाले सोच समझ कर प्रस्ताव का उत्तर देते हैं। इस प्रस्ताव को स्थानीय लोग पैगाम शब्द से संबोधित करते हैं।
कुछ लड़की वाले कहते हैं कि हमारे लड़की के लिए रिश्ता आया है या किसी ने पैगाम भेजा है।
लड़की और लड़का देखने का तरीका आज भी अनोखा है
ज्यादातर लोगों में देखा गया है कि लड़का या लड़की देखने की क्रिया को गुप्त रखना पसंद करते हैं। एक परिवर्तन देखा जा रहा है कि अब लड़का भी लड़की को देख सकता है। पहले ऐसा नहीं होता था। दोनों तरफ से घर के बड़े ही देखते थे।
जब दोनों पक्षों को एक दूसरे को पसंद कर लेते हैं। तभी शादी से पहले होने वाले रस्मो के लिए डेट फिक्स करते हैं। इस बिरादरी की खूबसूरती यह है कि लड़के वाले खुलकर डिमांड नहीं कर सकते हैं।
निसाना / खिरामा का रस्मों जानिए सबकुछ पुराने कानून के मुताबिक होता है
यह रस्म लड़की और लड़के वाले दोनों के यहाँ होता है। कभी-कभी सिर्फ यह लड़की वाले के यहाँ होता है। इस रस्म में उत्सव का माहौल होता है। जिस में मुख्य रिश्तेदार शामिल होते हैं। जिसमें बेहतरीन खाना परोसा जाता है। लड़का और लड़की को गिफ्ट दी जाती है।
जिसमें लड़के वाले अपने नए समधी के लिए बहुत सारा मिठाई मछली और कपडा़ आदि लाते हैं। लड़की के लिए गहने जेवर, कपड़े, मेकअप का सामान आदि शामिल होता है।
दूसरे दिन ऐसा ही समारोह लड़के वाले के घर पर होता है। लड़की वाले अपने नए दमाद के लिए कुछ गिफ्ट लेकर जरूर आते हैं। कभी-कभार ऐसा भी होता है कि, इसी समारोह में निकाह भी पढ़ा दिया जाता है।
खिरामा से लेकर शादी के बीच के समय का दौर
इस बीच एक समधी, अपने दूसरे नये समधी को दावत करते हैं और कई बार मिलते हैं। यह सिलसिला तब तक चलते रहता है जब तक कि शादी ना हो जाए। इस बीच में अगर कोई त्यौहार आ जाता है तो दोनों एक दूसरे को तोहफा देते हैं। जिसमें खास होता है नई बहू और नया दमाद।
कुल्हैया बिरादरी की सासु मां अपने दमाद का बहुत ज्यादा ध्यान रखती है। उसके गिफ्ट में कोई कमी नहीं होने देती हैं। इसी आने-जाने के क्रम में शादी का तिथि तय हो जाता है।
दावत
दावत देने की शुरुआत लोग अपने नए समधी से करते हैं। फिर बाकी रिश्तेदारों और दोस्तों को को भी देते हैं। लड़के-लड़की का जीजा जी का इस शादी में अहम रोल होता है। उसका रुठना भी वाजिब होता है जिसमें वह अपना डिमांड भी पूरा करवाता है। अपनी बात मनवाने के कोशिश भी करते हैं।
दूल्हे की तैयारी – दूल्हे के लिए अच्छे लिबास खरीदा जाता है, जो की लड़की वाले खरीदते हैं उसके साथ लड़के के रिश्तेदार के लिए भी कपड़े की खरीदारी की जाती है।
दुल्हन की तैयारी – दुल्हन के लिए भी कई सेट कपड़े, जेवर गहने, मेकअप का सामान आदि लड़के वाले खरीदते हैं। साथ ही उसके रिश्तेदारों के लिए भी कपड़े खरीदे जाते जिसे लोग मादरे हक कहते हैं ।
शादी के लिए सजावट – लोग अपनी हैसियत के हिसाब से शादियों में पैसे खर्च करते हैं। जिसमें सजावट भी शामिल है। थोड़ा बहुत हर लोग करते हैं क्योंकि शादी को यहां पर उत्सव के तौर पर मानते हैं।
आप कह सकते हैं कि शादी का मतलब खुशी होती है। कुल्हैया बिरादरी की शादियों में खाने-पीने का अहम रोल होता है। इसमें हर कोई दिल खोलकर पैसे खर्च करते हैं ताकि उसका रिश्तेदार खाना खाकर खुश हो जाए।
बरात
बारात सुबह के समय रवाना होता है उससे पहले भी बहुत सारी रशमें होती है।
लड़कों को भी उठकन हल्दी लगाया जाता है। मुख्य रूप से भाभी और दादी शामिल होती हैं। जिसमें काफी मजाक का दौर भी होता है। लड़के को भी नमक खाने से रोक देते हैं।
बरात से पहले की रात को नियाज दी जाती है। जिसमें मुख्य रिश्तेदार शामिल होते हैं जिसे अगले दिन बरात जाना होता है।
बारात की सुबह दूल्हा को नहलाने से लेकर तैयार करने की जिम्मेदारी उसके जीजा जी का होता है।
जब लड़का तैयार हो जाता है उसे चुमाने का रस्म शुरू होता है जिसमें औरतें उसे गिफ्ट, पैसे और गले का हार देती हैं। बरात रवानगी से पहले मिलात़ होता है उसके बाद खीर खाने का रस्म होता है।
दूल्हे के गाड़ी को अच्छे से सजाया जाता है उसके साथ उसके सारे जीजा जी दूल्हे के साथ बैठने की कोशिश करते हैं ज्यादा संख्या होने पर कुछ छूट भी जाते हैं।
जो जीजा जी उसके साथ नहीं बैठ पाते हैं वह दूसरी गाड़ी पर बैठ जाते हैं लेकिन बारात लड़की वाले के यहां पहुंचते ही वह उस भीड़ में शामिल हो जाते हैं।
इस बीच लड़के अपने मां बाप से इजाज़त और दुआ लेना नहीं भूलते हैं। बाकी रिश्तेदार दूसरी गाड़ियों से जाते हैं जिसमें महिलाएं शामिल नहीं होती हैं।
जब बाराती दुल्हन के घर पहुंचते हैं – बारात पहुंचने का समय 12:00 से 1:00 बजे दिन का होता है। लड़की वाले खुले दिल से उसका स्वागत करते हैं। लड़की का जीजा जी अपने नए होने वाले शाहरों को हाथ पकड़ कर घर की तरफ ले जाते हैं।
होने वाले नए साले लोग अपने नये जीजा जी से रिबन कटवाते हैं और पैसे का डिमांड करते हैं जिसमें थोड़ी नोक झोक होती है लेकिन पैसे मिल जाता है।
इस कमरे में लड़के के साथ उसके जीजा जी और दोस्त साथ होते है। शकरना ( खीर, मिठाई और ड्राय फ्रूट) से खाने की शुरुआत है उसके साथ दूल्हे राजा को अंगूठी या घड़ी भेंट की जाती है।
बाकी मेहमानों का इंतजाम बाहर होता है और वह बेहतरीन नाश्ते से खाने की शुरूआत करते हैं। नाश्ते के बाद चाय-पान का दौर चलता है लोग एक दूसरे से मिलते हैं और जान-पहचान भी बढ़ाते हैं। इसमें दुल्हन के रिश्तेदारों और दोस्तों को भी शामिल किया जाता है।
बारात पहुंचने के बाद लड़की को नहलाया जाता है। क्योंकि उससे पहले उटकन- हल्दी, मेहंदी लगा होता है। उटकन-मेहंदी का दौर पिछले तीन-चार दिन से चल रहा होता है। इस रसम को दलदररी भी करते हैं जिसमें पानी भराई रसम शामिल है।
निकाह
अगर पहले निकाह नहीं हुआ है तो निकाह कराया जाता है, कुछ लोगों की निकाह पिछले रसम ( निशाना/खिरामा) में ही हो जाती है। उसके बाद या पहले मेहमानो को दोपहर का खाना खिलाया जाता है।
निकाह होते ही दुल्हन और उसके अपनों का रोने का दौर शुरू हो जाता है क्योंकि दुल्हन को अपने घर को छोड़ने और अपने से बिछड़ने गम होता है।
निकाह के बाद लड़का-लड़की को एक साथ आंगन में बैठाने का रसम – लड़की के भाइयों का डिमांड होता है कि आंगन जाने से पहले नए जीजा जी को रुपए देना होता है जिसे गेट छेकोनी के नाम से जाना जाता है।
जब लड़के पैसे देने के बाद अंगन जाते हैं और वहां जाकर अपनी नई दुल्हन के साथ बैठते हैं और शुरू हो जाता है जूते चोरी होने का दौर। लड़का का जीजा जी चाहता है कि जूता चोरी ना हो वरना उसे पैसे देना होगा लेकिन नए साले लोग जूता चोरी कर ही लेते हैं और उसे फिर पैसे देना होता है।
लड़के के लिए मुश्किल यही खत्म नहीं होती है क्योंकि शालियां भी बहुत मजाक करती हैं। शालियां अपने नए जीजा जी की गले में हार डालती हैं उसके बदले जीजा जी को रुपए देना पड़ता है।
रुपए नहीं देने पर शालियां उसकी कॉलर को नहीं छोड़ती है। दूल्हे राजा काे पैसे देने का दौर उसमें सबसे ज्यादा आगे होती है उसकी सास जो लड़की की मां होती है।
सास भी कई प्रकार की होती हैं जैसे जेट सास ( दुल्हन की बड़ी बहन), दादियां सास ( दुल्हन की दादी), नानियां सास ( दुल्हन की नानी) चाचियां सास (दुल्हन की चाची) मामियां सास ( दुल्हन की मामी, खालियां सास ( दुल्हन की खाली) आदि।
दुल्हन की रवानगी, बेहद दर्दनाक होता है
शादी की खुशियों के बाद यहां पर रोने का दौर शुरू होता है जिसमें दुल्हन के अपने रोते-रोते दुल्हन को विदा करते हैं। दुल्हन भी बहुत रोती है क्योंकि उसका घर अब बदल चुका है साथ में सखियां और सहेलियों से बिछड़ने का गम । दुल्हन के साथ उसकी छोटी बहन और छोटा भाई भी साथ जाते हैं जिसे लोकंदी कहते हैं।
दुल्हन के साथ संदेश वो सामान भी उसके गाड़ी में रखी जाती हैं, इस तरह से दुल्हन चली आपने साजन के घर। शाम के समय बारात की वापसी हो जाती है।
नई दुल्हन के पहुंचने पर
दूल्हे की बहनें, दादी- नानी, नई दुल्हन को अपने साथ आंगन ले जाती हैं और दुल्हन को नई रस्मों से स्वागत की जाती है जिस में डाली लेना भी शामिल है।
लोकंदी अपनी बहन की रक्षा करते हैं। सनभाई – सनबहन दुल्हन और दूल्हे के भाई बहन को कहा जाता है जिसके बीच में काफी मजाक का रिश्ता होता है जिससे इस बिरादरी की शादियों को मजेदार बनाती है।
यह मध्य रात्रि का समय होता है जिसमें रसमें पूरे हो चुके होते हैं। कुछ लोग सो जाते हैं और कुछ लोग अगले दिन का भोज की तैयारी में लग जाते हैं। क्योंकि अगले दिन वलीमा है।
वलीमा / अहरौता
लड़की वाले भी बराती के तरह पहुंचते हैं उसका दिल खोलकर दूल्हे का परिवार स्वागत करता है। वलीमा में दूल्हे के बाकी रिश्तेदार और दोस्त भी शामिल होते हैं।
इस तरह से एक बड़ा भीड़ इकट्ठा हो जाता है। सब लोग आपस में मिलते-जुलते हैं। एक खुशनुमा माहौल बन जाता है उस बीच लजीज खाना परोसा जाता है। शाम होते ही दूल्हा-दुल्हन नौरोजी के लिए दुल्हन के घर जाते हैं।
नौरोजी
दूल्हा व दुल्हन को एक दूसरे के घर पर 9 दिन का समय बिताना होता है जो कि शादी के बाद तुरंत शुरू हो जाती है। इस रसम को नौरोजी कहते हैं। इस तरह से दूल्हा वहां पर 9 दिन का समय पूरा करता है जिसमें बेहतरीन खाना उसे परोसा जाता है और वहां के लोगों से मिलते-जुलते हैं।
लड़की को अपने ससुराल में 9 दिन पूरा करना होता है। इस तरह से कुल्हैया बिरादरी की शादियों का रसम पूरी होती है। इस मजेदार शादी को अरेंज मैरेज कहते हैं जिसको पूरा होने में लगभग 1 साल का भी समय लग जाता है।
इस शादी में सिर्फ दूल्हा दुल्हन का मिलन नहीं होता उसके साथ कई परिवारों का भी मिलन होता है और यह शादी जन्मों के लिए होती है।
कुल्हैया मुस्लिम समुदाय की शादी क्यों बेहतर है
रस्मों पर ध्यान देंगे तो आपको पता चलेगा कि दूल्हा और दुल्हन के यहां बराबर मेहमानों का आना जाना होता है यानी बराती = अहरौता। इस शादी में दहेज का डिमांड नहीं होता दुल्हन के मम्मी पापा अपने मर्जी से जो होता है अपने बेटी को देते हैं।
कुल्हैया मुस्लिम समुदाय के शादी में क्या बेहतर नहीं है
कुछ रशमें हैं जो गैर इस्लामिक है जैसे पत्तों से चुमाने और गीत संगीत का रशमें। कुछ आपसी बहस-बाजी जैसे मेहर का रकम, गैट छकौनी का रकम आदि।
इस बिरादरी में देखा गया है कि लोग अपने नजदीकी रिश्तेदारी में शादी करते हैं जो मेडिकल साइंस के अनुसार सही नहीं माना जाता है। शादी अगर दूर हो तो बेहतर होता है जिससे कि बच्चों में वेरिएशन आता है।
शादी करने के आसान तरीके होने से शादी जल्दी होता है
मां बाप और अपने रिश्तेदारों को बताए कि मैं शादी करना चाहता हूं। वह आपके लिए सही जीवन साथी खोल देंगे। आज के बिजी लाइफ में लोग रिश्तेदारी के लिए समय नहीं निकाल पाते हैं और आपके रिश्ते की अगवाई नहीं कर पाते।
मेट्रिमोनियल सर्विस का सहारा ले सकते हैं जिससे आपको यह पता चलेगा कहां पर लड़के और लड़कियां शादी के लिए हैं।
मुस्लिम विवाह का एक अपना ही मजा है जिसमें अल्लाह को हाजिर नाजिर मान कर लोग विवाह करते हैं, आप सभी को अल्लाह ताला निकाह की तौफीक अता फरमाएं और दूसरों की शादी में रुकावट ना बने।
Conclusion Points
कुल्हैया मैट्रिमोनियल पार करके आपको कैसा लगा आप अपने कमेंट में जरूर देखिएगा। पूर्णिया और अररिया जिले में बसे अपने बिरादरी के लोगों के बीच में शादी विवाह होता है लेकिन थोड़ा सा रीति रिवाज में अंतर देखा जा सकता है!
कुछ हमारे बिरादरी में पुराने रीति रिवाज है क्या उसमें बदलाव होना चाहिए। अगर आप ऐसा सोचते हैं तो कृपया कमेंट में जरूर लिखें!
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