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सही मायने में, जाति का अर्थ क्या है? जाति को किस तरह से परिभाषित किया जाता है? जाति की विशेषताएं, उपजाति किसे कहते हैं? जाति प्रथा के क्या दोष हैं तथा जाति से संबंधित अनेक महत्वपूर्ण जानकारियां इस Article में है।
जाति का परिभाषा समझने से पहले जाति का अर्थ समझना आवश्यक है. इसलिए लेख की शुरुआत अर्थ से किया जा रहा है धैर्य बनाकर के आखिर तक पढ़िए.
जाति का अर्थ
अंग्रेजी भाषा के शब्द Caste का हिन्दी रूपान्तरण जाति है। Caste शब्द की उत्पत्ति पुर्तगाली शब्द Casta से हुई है। जिसका मतलब प्रजाति, नस्ल या भेद है। यह शब्द लैटिन भाषा के शब्द Castus के बहुत ही करीब है।
जिसका मतलब विशुद्ध है। सबसे पहले casta शब्द का इस्तेमाल Garcia D’orta ने 1665 में प्रजातीय समूहों के विभेद के लिए किया था। जाति व्यवस्था का असर भारत में रहने वाले दूसरे मजहबी समूहों, जैसे-मुसलमान, ईसाई, बौद्ध, जैन और सिक्खों की सामाजिक व्यवस्था पर भी दिखाई देता है। भारत में लगभग 3000 से ज्यादा जातियाँ और उनकी अनेकों उपजातियाँ हैं।
जाति की परिभाषा क्या है?
अलग अलग विद्वानों ने जाति की परिभाषा अलग अलग प्रकार से दी है-
H. Cooley
जब एक वर्ग पूर्णतः heredity पर आधारित होता है तो उसे जाति कहा जाता हैं।
Risley
जाति परिवारों या परिवारों के समूहों का संग्रह है जिसका साधारण नाम है। जो एक अवास्तविक ancestor मनुष्य या देवता से जातिगत origin का दावा करता है, एक ही रिवायती रोजगार करने पर जोर दिया जाता है और एक ही homogeneous community के तौर पर उनके जरिया मान्य होता है जो अपना ऐसा मत व्यक्त करने के काबिल है।
H. Hattan
जाति एक व्यवस्था है जिसके अंतर्गत एक सोसाइटी अनेक आत्मकेंद्रित और एक दूसरे से पूर्णतः अलग अलग इकाइयों में बंटा हुआ रहता है। इन इकाइयों के परस्पर संबंध ऊंच-नीच के आधार पर संस्कारित रूप से तय होते है।
जाति और उपजाति में क्या अन्तर है?
उपजाति जीवों के किसी caste के अंतर्गत एक से ज्यादे वर्गीकरण को कहते हैं। कोई उपजाति अपने आप में नहीं पहचानी जा सकती है।
एक उपजाति किसी जाति की दो या ज्यादे उपजातियों में से एक हो सकती है लेकिन जाति की एक उपजाति नहीं हो सकती है। यह तभी मुमकिन है कि किसी जाति की सिर्फ एक ही उपजाति जिंदा हो, जैसा कि इंसानो में पाया जाता है।
वह प्राणी जो एक ही jati की अलग अलग उपजातियों के सदस्य हैं। एक दूसरे से मेल जोल करने में सक्षम होते हैं। उपजातियों के आपस के लक्षण उतने अलग नहीं होते हैं जितना जातियों के आपस में होते हैं लेकिन उनके लक्षण वंश से ज्यादा अलग होते हैं।
जाति व्यवस्था से क्या क्या होता है?
जाति व्यवस्था हिंदुओं के सामाजिक जीवन की खास व्यवस्था है। जो उनके आचरण, नैतिकता और विचारों को सबसे ज्यादे असर करती है। यह व्यवस्था कितनी पुरानी है, इसका उत्तर देना मुश्किल है। सनातनी हिन्दू इसे दैवी या ईश्वर प्रेरित व्यवस्था मानते हैं और ऋग्वेद से इसका सम्बंध जोड़ते हैं।
भारत में जाति व्यवस्था किस उद्देश्य से शुरू किया गया था?
भारत में caste सिस्टम शुरू करने का मकसद उस वक्त की समाज व्यवस्था को मजबूत बनाना और उसे शक्ति और संतुलन प्रदान करना था । सोसाइटी ने इस प्रथा को गलत रूप से ग्रहण कर लिया है जिससे सोसाइटी की तरक्की होने की बजाय यह वर्गों में बंट गया है।
जाति की विशेषताएं
जाति एक जटिल व्यवस्था है जिसे एक परिभाषा में बाँधना मुश्किल है। डा० जी एस. धुरिये ने जाति की कुछ विशेषताओं का उल्लेख किया है –
विवाह संबंधी प्रतिबंध – Caste सिस्टम के अन्तर्गत कोई भी व्यक्ति अपने जाति से दूसरे जाति में विवाह नहीं कर सकता है। असल में हिन्दू जाति अनेक उप-जातियों में बंटा हुआ है और हर एक उप-जाति अन्तर्विवाही समूह है यानि कोई भी व्यक्ति उप-जाति से बाहर विवाह नहीं कर सकता है।
अगर कोई अपनी जाति के अलावा दूसरे जाति में विवाह करता है, तो प्राचीन युग में उसे कठोर सजा देने का रिवाज था उसे आम तौर पर जाति से निकाल दिया जाता था।
व्यवसाय संबंधी प्रतिबंध – Caste सिस्टम में अलग अलग जातियों के रोजगार निश्चित होते हैं। जैसे कि ब्राह्मण सिर्फ धार्मिक और अध्ययन-अध्यापन के काम ही कर सकता है। शूद्र सिर्फ सफाई का ही काम कर सकता है।
इस तरह हर जाति का एक निश्चित रोजगार होता है और कोई भी जाति अपना ही रोजगार करती हैं। इसमें व्यक्ति का रोजगार भी पैतृक रिवाजों से आता है जैसे कि कुम्हार का बेटा कुम्हारी का और धोबी का बेटा कपड़ा धोने का ही काम करता है।
जाति का परिणाम छुआछूत – Caste सिस्टम के अनुसार इंसान का इंसान से भेद-भाव है। मैं इस समूह का हूँ, उस समूह का नहीं, Caste सिस्टम की हर बात इसी भावना से शुरु होती है। इस तरह से बहुत सारी असुविधाएँ नीच जातियों को होती है।
खान-पान तथा सामाजिक सहवासों पर रोक – Caste सिस्टम अपने लोगों पर खाने पीने औ social cohabitation पर कई तरह के रोक लगाती हैं। हिन्दुओं में हर जाति को यह हक नहीं है कि वह दूसरी जाति के हाथ का बना खाना खाए.
लेकिन ब्राह्मणों के हाथ का बना खाना दूसरी सभी जातियों के लोग खाते हैं। इसी तरह से जल-ग्रहण करने और कच्चे पक्के भोजन के सिलसिले में भी छुआछूत किया जाता हैं। ब्राह्मण छुआ-छूत सबसे ज्यादा करते हैं।
सामाजिक और धार्मिक विशेषाधिकार – हिन्दू जातीय सोपानक्रम में सबसे ज्यादा Socio-religious rights ब्राह्मणों को है और सबसे कम हक अछूतों को है। इस caste सिस्टम में कुछ लोगों को जन्म से ही सारे हक मिले हैं और कुछ लोगों को सभी Socio-religious economic rights से दूर रखा गया है.
समाज का खण्डात्मक विभाजन – Caste सिस्टम के जरिया भारत के सोसाइटी खंडों मे बांट दिया गया है हर खण्ड के लोगों के लिए यह जरूरी है कि वह अपने पद तथा जाति के नियम के हिसाब से काम करें। लेकिन अगर कोई व्यक्ति अपनी जाति के नियमों को तोड़ता है तो उसे या तो सजा दी जाती है या जाति से निकाल दिया जाता है।
जन्मजात सदस्यता – जाति की सदस्यता जन्मजात होती है। कोई व्यक्ति जिस जाति में पैदा होता है, मरने तक उसी में बना रहता है। एजुकेशन, religion, business और खूबियों के बढ़ जाने से जाति बदली नहीं जा सकती।
जाति प्रथा के दोष
श्रम की गतिशीलता का गुण समाप्त कर देती है– Caste सिस्टम ने काम या रोजगार को स्थायी रूप दे दिया है। लोग काम को अपनी पसन्द से छोड़ या अपना नहीं सकता और उसे अपनी जाति के निश्चित रोजगार को ही करना पड़ता है। चाहे वह उसे पसन्द हो या ना हो। इससे समाज की गतिशीलता ही खत्म हो जाती है।
अस्पृश्यता – Caste सिस्टम से छुआ छूत फैलती है। महात्मा गांधी के अनुसार जाति की सबसे ज्यादा घृणित व्यक्ती है। इससे देश का ज्यादातर हिस्सा पूर्ण दासता के लिए मजबूर हो जाता है।
एकता को ठेस पहुंचती है – Caste सिस्टम ने कठोरता पूर्वक एक वर्ग को दूसरे वर्ग से अलग करके और उनमें परस्पर किसी भी तरह के मेल-जोल को रोककर एकता को बहुत नुकसान पहुंचाया है।
राष्ट्रीयता में रूकावट – देश की एकता के लिये यह रुकावट साबित हुई है। निचले वर्ग के लोगों के साथ सोसाइटी में जो अपमानजनक व्यवहार होता है उसके वजह से वे असंतुष्ट रहते है।
सामाजिक प्रगति में रूकावट है– यह राष्ट्र की सामाजिक और आर्थिक विकास में बहुत बड़ी बाधा है। लोग धर्म सिद्धांत में यकीन करने के वजह से रूढ़िवादी बन जाते है। राष्ट्र की तथा अलग अलग समूहों और वर्गो की आर्थिक स्थिति ज्यों की त्यों ही रहती है।
अप्रजातान्त्रिक – आखिर में क्योंकि caste सिस्टम में जाति, रूप, रंग और वंश का विचार किये बिना सब लोगों के एक समान हक नहीं होते इसलिये यह अप्रजातान्त्रिक है। नीच वर्गो के लोगों के रास्ते में खास तौर पर रूकावटे डाली जाती है.
उन्हे बौद्विक, मानसिक और शारीरिक विकास की पूरी तरह आजादी नहीं दी जाती और न ही उसके लिए मौके दिए जाते है। Caste सिस्टम के खूबी खामी पर भी अच्छे ढंग से सोचने पर पता चलता है कि इसमें खूबी के मुकाबले में खामी ज्यादा है।
भारत में जाति का आधार क्या है?
भारत में caste का आधार बहुत जटिल क्रम है। जिसमें जाति में अनुष्ठान, शुद्धता के अनुसार विभाजित किया गया है, जैसे कि ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। जो जिस जाति का होता है वह जीवन से लेकर मरण तक उसी जाति का है।
क्या जातिगत जनगणना आवश्यक है?
आप मित्रों से मेरा एक सीधा प्रश्न है कि क्या भारत में जातिगत जनगणना आवश्यक है? इन दिनों टीवी डिबेट में जातिगत जनगणना एक हॉट टॉपिक बना हुआ है. आपको इस लेख पढ़ने के बाद समझ में आ गया होगा, क्या अपने भारत देश में जातिगत जनगणना होना चाहिए या नहीं?
पॉलिटिकल पार्टी क्या कहती है, उसको छोड़ें आप अपनी राय कमेंट में जरूर लिखिए.
Conclusion Points
अंत में, Jati शब्द पुर्तगाली और लैटिन संस्कृति का एक उत्पाद है, जो नस्ल, प्रजाति और वर्ग के बीच सामाजिक भेद को दर्शाता है। यह सदियों से कई संस्कृतियों का अभिन्न अंग बना हुआ है और आज भी कई देशों में इसका उपयोग जारी है।
जबकि जाति को अक्सर भेदभाव या विभाजन के रूप में देखा जाता है, यह पहचान और अपनेपन के एक महत्वपूर्ण पहलू का भी प्रतिनिधित्व कर सकती है। समाज पर इसके प्रभाव को बेहतर ढंग से समझने के लिए, जाति को ऐतिहासिक और आधुनिक दोनों दृष्टिकोणों से देखना महत्वपूर्ण है।
इस आर्टिकल में जाति के बारे में कई महत्वपूर्ण जानकारियां हैं। उम्मीद है कि जाति से संबंधित ये आर्टिकल पढ़ने के बाद आपका ज्ञान जरूर बढ़ा होगा.
अगर आपके पास इससे संबंधित कोई भी प्रश्न हो तो आप जरूर पूछे और कमेंट बॉक्स में लिखिए, धन्यवाद.
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