पूर्णिया का इतिहास काफी पुराना है। पूर्णियाँ जिला एक प्राचीन व गरिमापूर्ण स्थान रहा है। गौरवपूर्ण इस संबंध हिन्दू धर्म का महाभारत, इस्लाम का हज़रत अबु बकर सिद्दीक़, और बुद्धिस्ट का हरसा से रहा है.
14 फरवरी 1770 को इस जिले की स्थापना ब्रिटिश सरकार ने की थी। इस जिले का पहला कलेक्टर डुकरेल जबकि अंतिम कलेक्टर मोहम्मद अली खान थे।
आपसे अनुरोध करता हूं कि इस लेख को पढ़ने के लिए कुछ समय ज़रुर दें। आपका पूर्णिया से संबंधित ज्ञान ज़रुर बढ़ जाएगा। कटिहार, अररिया एवं किशनगंज इसी जिले से बना है.
पूर्णियाँ के इतिहासिक नाम के इतिहास को पहले जान लीजिए
इस प्रांत का नाम इतिहासकारों ने यहां की भौगोलिक स्थिति एवं धार्मिक उदय से प्रेरित होकर इस प्रांत का नाम पुरनिया रखा था।
इस प्रांत का भौगोलिक स्थिति अनोखा है क्योंकि यह प्रांत तीन नदियों (गंगा, कोशी एवं महानन्दा) के त्रिकोण, हिमालय पर्वत का शीर्ष, काला पानी और घने जंगलों संगम था। इस प्रांत को विभिन्न धर्मों से जोड़कर देखा जाता है जैसे हिंदू, इस्लाम, बौद्ध, जैन एवं सिख।
पूर्णिया नाम की उत्पत्ति की कई संभावनाएं हो सकती हैं, जिन में प्रमुख हैं संस्कृत शब्द पूर्ण-अरन्या से उत्पन्न हो सकता है, जिसका अर्थ है “पूर्ण जंगल”। पुरनिया की उत्पत्ति जिसे Purain या लोटस (कमल) शब्द से लिया गया है, जो कि कोसी और महानंद नदियों पर उगाया जाता है।
पूर्णिया का ऐतिहासिक क्षेत्र एवं मौजूदा क्षेत्रफल
600 ईसा पूर्व के शुरुआत में इस प्रांत का पश्चिमी भाग अंग्ना राज्य का हिस्सा था। जबकि पूर्वी भाग पुंड्रा-वर्धा राज्य का हिस्सा था जो कि महानंदा, कोसी और हिमालय का क्षेत्र हुआ करता था।
मौजूदा समय के हिसाब से देखें तो भागलपुर का भी कुछ हिस्सा पूर्णिया जिला का भाग था। उसके साथ मालदा और दार्जिलिंग का भी कुछ हिस्सा इसी क्षेत्र में आता था।
अगर ब्रिटिश काल की बात करें तो, 10 फरवरी 1770, ब्रिटिश हुकूमत ने पूर्णिया का सीमांकन किया जिसमें दार्जिलिंग समेत कई अन्य क्षेत्रों को पूर्णिया से अलग कर दिया गया था।
उसके बाद 14 फरवरी 1770 को पूर्णिया जिले की स्थापना की गई थी। 1912 में बंगाल का विभाजन के फलस्वरूप बिहार नाम का राज्य के अस्तित्व में आया था और 1935 में उड़ीसा को बिहार से अलग कर दिया गया।
History of Purnia In Hindi – पाषाण युग से अभी तक
पूर्णिया का प्राचीन इतिहास
Purnea का इतिहास के पन्नों को पलटेंगे तो,आपको गर्व होगा। पूर्णिया का इतिहास इतना पुराना है कि आपने कभी सोचा नहीं होगा।
पाषाण युग (70000 से 3300 ई।पू) – पूर्णिया को काला पानी क्यों कहा जाता है ? अगर आप छुट्टियों में कभी घर आते हैं तो आपके चेहरे का रंग क्यों बदल जाता है ? इस प्रश्न की एक गुत्थी को सुलझाने के लिए मैंने बहुत सारे इतिहास के पुस्तकों का अध्ययन किया।
जब पाषाण युग का इतिहास पढ़ा तो पता चला कि इस हिमालय के क्षेत्र में उस समय घने जंगल हुआ करते थे। हिमालय से निकलने वाली नदियों में जो पानी बहता था, उसका रंग काला हुआ करता था, शायद इसीलिए इतिहास-कारों ने पूर्णिया को कभी काला पानी भी कहा था।
सिन्धु घाटी सभ्यता- (3300-1700 ई।पू) – किसी भी इतिहासकार ने इस क्षेत्र का विशेष वर्णन नहीं किया है।
वैदिक काल (1500–500 ई।पू) – आर्यो का आगमन काल माना जाता है जिसमें आर्यावत क्षेत्र का उदय हुआ जिसमें बंगाल और बिहार शामिल था। डॉ। जैकोबी के शोध से पता चला था कि काँसे के उपकरण व कवच जो आर्यो ने इस्तेमाल किया था, इसी क्षेत्र से प्राप्त हुआ था। महानंदा नदी पारंपरिक रूप से आर्यन के प्रभाव क्षेत्र शामिल हो गया था।
मगध साम्राज्य (545–320 ई।पू) – मगध साम्राज्य का राजधानी पाटलिपुत्र था जिसे लोग अभी पटना के नाम से जानते हैं। इस साम्राज्य का विस्तार पुर्णिया के साथ अखण्ड भारत के रूप में हो गया था। शताब्दी के महान बौद्ध सम्राट हर्ष, के मौत के बाद पूर्णिया आदित्यसेन के अधीन मगध साम्राज्य का हिस्सा बन गया थाा।
चन्द्रगुप्त मौर्य (322 ईसा पूर्व- 298 ईसा पूर्व) – बिहार में नंद वंश का राजा धननंद शासन के कुछ सालों के बाद चंद्रगुप्त का उदय हुआ था।
शुंग साम्राज्य (184–123 ई।पू)
मौर्य वंश का अंत के बाद शुंग साम्राज्य का उदय हुआ, पुष्यमित्र पहले राजा बने और पूर्णिया के साथ पूरे भारत में अपना साम्राज्य स्थापित किया था।
कण्व राजवंशलगभग (73 – 28 ई। पू।)
वासुदेव राजा बने उनका शासन बिहार के साथ उत्तर प्रदेश के कुछ भागों तक सीमित हो गया जिसमें पूर्णिया भी शामिल था।
नौवीं सदी से 12 वीं शताब्दी तक यह पाल राजा के अधीन था, और बाद में सेना के अधीन हो गया था। सातवीं शताब्दी की शुरुआत में अब जिले का शासन शासन्ना अधीन था जो एक शक्तिशाली राजा थे।
पूर्णिया का मध्यकालीन इतिहास – मुस्लिम शासकों का दौर शुरू हुआ था
मोहम्मद बिन बख्तियार ख़िलजी
तेरहवीं शताब्दी की शुरुआत में मोहम्मद बिन बख्तियार ख़िलजी ने पूर्णिया को अपने शासन क्षेत्र में शामिल कर लिया था। बिहार पर सबसे पहले विजय पाने वाला मुस्लिम शासक ख़िलजी थे।
तुग़लक़ वंश ( 1320-1414 ई.)
ग़यासुद्दीन ने तुग़लक़ वंश की स्थापना की, उस समय पूर्णिया का शासन तुग़लक़ वंश के अधीन था।
मुग़ल वंश (1526–1857 ई।)
मुगल शासन के शुरुआती दिनों में पूर्णिया मुगल साम्राज्य का एक सैन्य प्रांत था। उत्तर पूर्व की जंगली जातियों के हमलों के खिलाफ अपनी सीमाओं की रक्षा में सैन्य प्रांत बनाया था।
ऐन-ए-अकबारी विश्वविख्यात इतिहासिक ग्रंथ में पूर्णिया का नाम शामिल है जिसमें महानंदा नदी का व्याख्या किया गया है।
सत्तरहवीं शताब्दी (1722) के प्रारंभ में एक फौजदार को नवाब के पद के साथ नियुक्त किया गया था जिसे राजस्व और सीमा रक्षा का कार्य सौंपा गया था।
महानतम नवाबों में सैफ खान का नाम प्रसिद्ध है. जिस ने जलालगढ़ किला को बनाया था। अभी भी पूर्णिया शहर से 30 किलोमीटर उत्तर जलालगढ़ में स्थित है। इसके लिए किले को बनवाने का मकसद था नेपाली लुटेरों से छुटकारा पाना।
एक बार बीरनगर राजा ने 15,000 घुड़सवार सेनाओं के साथ हमला कर दिया था, जहांगीर के वफादार सैयद मुहम्मद जलाल-उद-दीन युद्ध में नेपाली राजा को हराया था।
1757 से पहले बिहार राज्य का कमान सिराजुद्दौला के हाथ में था, हार के बाद 1765 में बंगाल के साथ पूर्णिया का शासन ब्रिटिश सरकार के कब्जे में आ गया था।
ब्रिटिश हुकूमत में पूर्णियाँ जिले का हालात कैसा था
पूर्णिया जिला का पहला ब्रिटिश कलेक्टर का नाम डुकरेल था जबकि अंतिम कलेक्टर मोहम्मद अली खान थे। डुकरेल को इतिहास में सुधारों के लिए याद किया जाता है जिसने सती प्रथा के विरुद्ध लोगों को जागरुक करने का काम क्या था।
शिक्षा
ब्रिटिश काल में पूर्णिया जिले का शिक्षा के क्षेत्र में हालात अच्छे नहीं थे। 1882 में हुए लोरेटो सम्मेलन के बाद, ब्रिटिश की तरफ से पहला प्रयास एक ईसाई नन ने शुरू किया था। उनके प्रयास के द्वारा एक बोर्डिंग स्कूल खोला गया था, उस बिल्डिंग को आज कम्बलिन के नाम से जाना जाता है।
1853 ईस्वी में ब्रिटिश सरकार के द्वारा एक हाई स्कूल का स्थापना किया गया था जिसका नाम जिला स्कूल, पूर्णिया है। हायर एजुकेशन के लिए उस समय कोई भी कॉलेज नहीं हुआ करता था। गिने-चुने छात्र ही पढ़ने के लिए कोलकाता या पटना जाते थे।
यातायात
ईस्ट इंडियन रेलवे कंपनी ने 1888 में मनिहारी -कटिहार व कसबा रेल खंड शुरू किया था। उसके अगले साल 1889 में बारसोई-किशनगंज रेल खंड का परिचालन शुरू किया था।
आप कह सकते हैं कि कटिहार रेलवे स्टेशन 129 साल से ज्यादा पुराना रेलवे स्टेशन है। भारत में सबसे पहला ट्रेन मुंबई और ठाणे के बीच 16 अप्रैल 1853 में ईस्ट इंडियन रेलवे कंपनी ने चलाया था।
सन 1878 सिलीगुड़ी और कोलकाता के बीच में पहला रेल चलाया गया था, उसके बाद सन 1915 में कटिहार रेलवे स्टेशन को सिलीगुड़ी, किशनगंज और दालकोला से जोड़ा गया था।
पहली बार सन 1915 में कटिहार रेलवे स्टेशन का रेल संपर्क कोलकाता से हो चुका था। आजादी की लड़ाई के समय कटिहार कलकत्ता रेलखंड का उपयोग बंद हो गया था जिससे कई सालों के बाद शुरू किया जा सकता था।
ब्रिटिश काल में बहुत सारे लकड़ी के पुल एवं पक्की सड़कों का निर्माण हुआ था जिसके साक्ष्य अभी भी मौजूद हैं।
स्वास्थ
19वी सदी के शुरुआत में कटिहार व पूर्णिया में अस्पताल का निर्माण हुआ था, शुरुआती समय में सिर्फ ब्रिटिश ऑफिसरों तक सेवा सीमित था।
1934 का भूकंप के बाद भारतीयों के लिए भी सेवा शुरू किया था। 1915 से लेकर 1925 स्वास्थ्य के हिसाब से पूर्णिया का इतिहास का सबसे खराब माना जाता है क्योंकि इस समय लोगों को हैज़ा, चिकन पॉक्स और मलेरिया के गंभीर बीमारियों ने लाखों लोगों की जान ली थी।
कृषि
ब्रिटिश काल में पूर्णिया वासियों का प्रमुख पेशा कृषि हुआ करता था, कृषि उत्पादन का एक चौथाई हिस्सा ब्रिटिश सरकार लगान के तौर पर किसानों से वसूलते थे।
ब्रिटिश अधिकारी अपनी आसानी के लिए यहां के स्थानीय जमींदारों को लगान वसूलने का काम दे दिया था। यहां के स्थानीय जमींदार तय सीमा से ज्यादा लगान वसूल करते थे।
अगर कोई समय पर लगान नहीं दे पाता था तो उनके साथ बहुत बुरा बर्ताव किया जाता था यहां तक कि उनके घर से बेटियों को उठा लेते थे।
यह इतिहास काफी पुराना नहीं है, आज भी वह लोग आपके समाज में मौजूद हैं जिन्होंने ब्रिटिश से भी ज्यादा यहां के स्थानीय जमींदारों के घटिया बर्ताव को देखा है। इन सभी बेबस लोगों को भूख और प्यास से आजादी चाहिए था।
भारत की आज़दी की लड़ाई में पूर्णिया का योगदानों जानिए
पूर्णिया में आज़ादी की लड़ाई की शुरुआत किसानों ने किया थी, 1922-23 के आसपास मुंगेर में किसान सभा का गठन हुआ था। 1940-41 के बाद, किसान सभा आंदोलन धीरे-धीरे कांग्रेस आंदोलन में विलय हो गया था।
स्वदेशी आंदोलन का प्रभाव सबसे पहले बिहार में पूर्णिया के छात्रों पर पड़ा था। पूर्णिया के अतुल चंद्र मजूमदार, बीएन कॉलेज के छात्र थे, पटना में उसे भारत के रक्षा अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया गया था।
इस गिरफ्तारी ने छात्रों को संगठित होने का एक मौका दिया। किसान और छात्र आज़ादी की लड़ाई में एक साथ आ गये।
गोकुल कृष्ण रॉय व सत्येंद्र नारायण रॉय एवं अन्य सामाजिक संगठन के नेताओं ने 1920 मैं कांग्रेस द्वारा आयोजित नागपुर सत्र में भाग लिया।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन का हिस्सा बने। श्री राजेन्द्र प्रसाद ने 1921 में पूर्णिया जिले का दौरा किया और उन्होंने कई सभाएं की जिनमें उन्होंने किसानों और छात्रों को संगठित किया।
महात्मा गांधी जी 1929 में पूर्णिया आये थे, उस समय के दौरान उन्होंने नाजगूंज के राजा से मुलाकात की और किशनगंज , बिश्नुपुर, अररिया और पूर्णिया सहित विभिन्न स्थानों पर जनसभा को संबोधित किया।
1942 में संपूर्ण भारत आंदोलन की रणनीति पूरी तरह से पूर्णिया के लोगों ने बनाया था, इस आंदोलन ने अंग्रेजी सरकार की जड़ तक को हिला कर रख दी थी।
आखिरकार 15 अगस्त 1947 को भारत को आज़ादी मिली इस तरह पूर्णिया भी आज़ादी के जश्न में डूब गया लेकिन कुछ यादों के साथ।
आपको बता दूं की बिहार में पूर्णिया जिला का तीसरा स्थान है जहां से ज्यादा लोग जेलों में गए और उसे फांसी हुई थी।
पूर्णिया के इस गौरवपूर्ण इतिहास को कभी भुलाया नहीं जा सकता और अपने महापुरुषों की बलिदान को हमें हमेशा याद रखना चाहिए।
आज़दी के बाद पूर्णियाँ क्या हालात में बदलाव हुआ क्या?
आजादी मिलने के समय Purnia की स्थिति बहुत ही भयावह थी लोगों के पास काम नहीं के बराबर थे। किसान आत्महत्याएं कर रहे थे।
बिहार के पहले मुख्यमंत्री श्री डॉक्टर श्रीकृष्ण सिंह पूर्णिया की समस्याओं को पूरे देश से अवगत कराया उन्होंने निदान करने के लिए हरसंभव कोशिश की थी। बिहार के पहले दलित मुख्यमंत्री पूर्णिया से हैं जिसका नाम भोला पासवान शास्त्री हैै।
कटिहार का उदय पूर्णिया से हुआ है
कटिहार भारत के पूर्वी भाग में स्थित एक छोटा और सुंदर जिला है। यह बिहार और पश्चिम बंगाल के बीच में स्थित है। 1976 ई. में कटिहार को पूर्णिया से अलग कर प्रशासनिक उद्देश्यों के लिए एक नया जिला बनाया गया। तभी से लोग इस स्थान को कटिहार जिले के नाम से जानते हैं।
1976 ई. में एक स्वतंत्र जिले के रूप में गठित होने के बाद से कटिहार ने एक लंबा सफर तय किया है। दो राज्यों (बिहार और पश्चिम बंगाल) की सीमा के पास आदर्श स्थान होने के कारण समय के साथ अर्थव्यवस्था में भी काफी वृद्धि हुई है।
किशनगंज का उदय 1990 में हुआ
बिहार के किशनगंज जिले को 1990 में पूर्णिया से अलग कर बनाया गया था, जिससे किशनगंज के लोगों को एक अलग पहचान मिली और इसे एक अलग जिला बना दिया गया।
इस नए गठन ने किशनगंज के लोगों को सरकार और अन्य विकासात्मक परियोजनाओं के संदर्भ में अपना प्रतिनिधित्व करने का अवसर दिया। तब से, लोग किशनगंज को अपनी अनूठी भौगोलिक विशेषताओं, सांस्कृतिक प्रभावों और सामाजिक-आर्थिक संरचना के साथ एक विशिष्ट जिले के रूप में जानते हैं।
किशनगंज रणनीतिक रूप से भारत-नेपाल सीमा पर स्थित है; इसे हमेशा भारत और नेपाल के बीच व्यापार और वाणिज्य के प्रवेश द्वार के रूप में माना जाता रहा है। स्थलाकृति में बीहड़ इलाके, नदियाँ, तराई और पहाड़ियाँ शामिल हैं; ये सभी कारक इसे बिहार के सबसे विविध जिलों में से एक बनाने में योगदान करते हैं।
अररिया का उदय अभी पूर्णिया जिले से ही हुआ है
अररिया जिला भारत के बिहार राज्य का एक हिस्सा है। यह 1990 में पूर्णिया जिले के विभाजन के बाद बनाया गया था। इससे पहले अररिया पूर्णिया जिले का एक अनुमंडल हुआ करता था जिसकी स्थापना 1809 में हुई थी। अररिया जिले का गठन प्रशासनिक सुविधा के साथ-साथ इस क्षेत्र के विकास की बेहतर संभावनाओं को ध्यान में रखकर किया गया था।
इसने 1990 में अपनी स्थापना के बाद से इस क्षेत्र में विकास के कुछ स्तर लाने में मदद की है। सड़कों और पुलों के निर्माण जैसे कई बुनियादी ढांचे के विकास हुए हैं, जिन्होंने इन वर्षों में इस क्षेत्र में कनेक्टिविटी में सुधार किया है।
पूर्णिया प्रमंडल कब बना था?
1990 में पूर्णिया प्रमंडल बना जिनमें चार जिले शामिल हैं उनका नाम है पूर्णिया, कटिहार, किशनगंज और अररिया। भागलपुर और पूर्णिया के बीच में परिसीमन 1990 में ही हुआ था जिसमें पूर्णिया का कुछ भाग भागलपुर जिले में शामिल किया गया था।
Conclusion Point
जब भविष्य की तैयारी की बात आती है, तो अपने समुदाय के इतिहास को जानना महत्वपूर्ण है। यह न केवल आपके शहर या शहर के सामने आने वाली चुनौतियों और अवसरों को समझने में आपकी मदद करता है, बल्कि यह आपको अपने अतीत को देखते हुए आराम की भावना भी दे सकता है।
कठिन समय के दौरान यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण है – यह जानकर कि प्रगति के क्षण आए हैं और आशा आपको वर्तमान में दिल लगाने की अनुमति देती है।
दोस्तों, उम्मीद करता हूं आपको पूर्णिया का इतिहास पढ़ कर अच्छा लगा होगा। पूर्णिया से संबंधित अन्य लिए लिंक नीचे दिया गया है, कृपया एक बार ज़रुर पढ़ें.
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