मरहूम हाजी गयास नशतर साहेब ने बाडा़ईदगाह में नशतर हाई स्कूल, मतिउर बनात मदरसा और नशतर एजुकेशनल ट्रस्ट स्थापित किए. वे झौवाड़ी हाई स्कूल के हेडमास्टर रहते हुए टेन प्लस टू हाई स्कूल बनवाया. हाई स्कूल के दो कमरों के बिल्डिंग से 40 कमरों तक पहुंचाया.
आपने बहुत से शिक्षाविदों के बारे में सुना होगा। यह नाम उन शिक्षाविदों में जोड़ा जाता है, जिन्होंने संपूर्ण जीवन शिक्षा के लिए काम किया हो। उस नाम को पूर्णिया जिले के लोग गयास नशतर के नाम से जानते हैं।
Haji Gheyash Nashter साहेब का प्रारंभिक जीवन संघर्षों से भरा रहा
उनका जन्म बाडा़ ईदगाह पंचायत के मती नगर बहुरा गांव में हुआ है। उनके पिता का नाम मतिउर रहमान है। जो मिडिल स्कूल के हेडमास्टर थे। मतिउर रहमान के पिता का नाम जीनत अली है।
जीनत अली को हाथी के नाम से भी जाना जाता है। जीनत अली गुलाम भारत में एक क्रांतिकारी थे। वे इतने ताकतवर थे कि हाथी से लड़ कर उसे पटकर्नी दे देते थे।
जीनत अली को अंग्रेज सरकार के घोर विरोध करने के कारण उसे फांसी दे दिया गया था। उनके बेटे मतिउर रहमान को यह इलाका छोड़कर कोलकाता में जाकर शरण लेना पड़ा। जब भारत आजाद हुआ तब वह एक शिक्षक के रूप में अपने इलाके में पुनः प्रवेश पाए कर पाये थे।
गयास नशतर साहेब की प्रारंभिक शिक्षा बाडा़ ईदगाह मदरसा से हुआ। उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा सौरा हाई स्कूल से पास किया। मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद उनका दाखिला पूर्णिया कॉलेज में हुआ।
उनके बाद वह बीएचएमएस करने के लिए मुजफ्फरपुर के होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज चले गए। शुरुआती जीवन में डॉक्टर इमाम के साथ उन्होंने अपना क्लीनिक पूर्णिया में स्थापित किया।
शिक्षा के क्षेत्र में उनके उल्लेखनीय कार्यों को कभी भुला नहीं जाएगा
लेकिन उसे लगा कि मैं तो शिक्षित हो चुका हूं। लेकिन मेरे इलाके के ज्यादातर भाई-बहन अभी भी अशिक्षित हैं। उन्होंने मेडिकल की प्रैक्टिस छोड़ दिया।
बाडा़ईदगाह मार्केट के पास उन्होंने पहली बार 1980 में एक बाडा़ ईदगाह आइडियल एकेडमी नाम का कान्वेंट खोला था, जहां पर बच्चों को इस सर जमीन में पहली बार आधुनिक शिक्षा मिलना शुरू हुआ.
1986 में उन्होंने तस्लीमुद्दीन एवं हाजी मुजफ्फर हुसैन के साथ मिलकर बाडा़ ईदगाह में नशतर उच्च विद्यालय की स्थापना किया।
इसी क्रम में वह किसानों की मदद के लिए पूर्णिया कॉपरेटिव बैंक के चेयरमैन के रूप में भी सेवा दिया, उन्होंने लोन माफी में सीमांचल के किसानों को भरपूर मदद किया.
उन्होंने जो भी कमाया उसने सब कुछ पूछ हाई स्कूल को बनाने में लगा दिया। वह बुरी तरह आर्थिक तंगी के चक्रव्यूह में फंस गए। उसके बाद उन्होंने चंपारण के सरकारी स्कूल में नौकरी करना शुरू कर दिया।
बाद में उसका ट्रांसफर झौवाड़ी हाई स्कूल शिक्षक में तौर पर हो गया। बाद में पद उन्नति के बाद इसी स्कूल के हेड मास्टर बन गए। यह हाई स्कूल पहले दो कमरों का हुआ करता था। इन्हीं के अथक प्रयास के कारण आज इस हाई स्कूल के पास 40 से ज्यादा कमरे हैं।
अपने कार्यकाल में, बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिलकर अमौर प्रखंड में सबसे पहले झौवाड़ी हाई स्कूल को प्लस टू हाई स्कूल बनवाया.
वे बाडा़ ईदगाह तंजुमिया मदरसा के सेक्रेटरी के रूप में भी सेवा दिया, अपने कार्यकाल में मदरसा की शिक्षा को आधुनिक बनाने के लिए भी उल्लेखनीय कार्य किए हैं.
नारी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए इन्होंने मति उल बनात मदरसा का भी स्थापना अपने घर के पास किया। इनके द्वारा स्थापित किए गए दोनों संस्थाओं ने लगातार लोगों को सेवाएं दी। लेकिन विडंबना यह है कि बिहार सरकार से आज भी इन दोनों की संस्थाओं के शिक्षकों को तनख्वाह नहीं मिलता है।
आर्थिक तंगी के कारण शिक्षक भी हमेशा काम करने के लिए इन दोनों संस्थाओं में नहीं आते हैं। इसके बावजूद हाजी गयास नशतर साहेब संस्था सहायक इन दिनों रिटायर होने के बावजूद भी यहां पर काम करने आते हैं।
नशतर साहेब 03 सितंबर 2020 को दुनिया को अलविदा कह दिया
एक क्रांतिकारी का पोता अपने आखिरी दिनों में भी शिक्षा की रोशनी फैलाने के लिए अपने घर के आंगन में बच्चों को पढ़ा रहे थे क्योंकि उस समय पूरे भारत में संपूर्ण लॉकडाउन था.
इसी बीच उनका तबीयत अचानक खराब हो गया, दिल्ली ले जाने के क्रम में उनका इंतकाल हो गया. अल्लाह ताला उन्हें जन्नत में आला से आला मुकाम दें और उनके गुनाहों को माफ करें.
उनके बड़े बेटे का नाम शाहनवाज नशतर है जो कसबा केडी गर्ल हाई स्कूल में शिक्षक हैं. उनके दूसरे बेटे का नाम Md Sarfaraz Nashtar है, जो सत्तारूढ़ जदयू पार्टी के मीडिया सेल से जुड़े हुए हैं.
उनके तीसरे बेटे का नाम शाहीन नशतर है जो दिल्ली मेट्रो में असिस्टेंट इंजीनियर के तौर पर अपनी सेवा दे रहे हैं.
Conclusion Point
मरहूम हाजी गयास नशतर साहेब ने जो शिक्षा का चिराग 12 गांव में जलाया था, वह अभी नहीं बुझा है. उनके द्वारा कायम किया गया स्कूल मदरसा आज भी खड़ा है.
उनके द्वारा बनाए गए हजारों विद्यार्थी आज बेहतरीन जिंदगी जी रहे हैं. उन्हें आज भी लोग प्रेरणा के रूप में याद करते हैं. मैं भी दुआ करता हूं कि अल्लाह ताला उसे जन्नत अता करें. आमीन.