भाषा सबसे अनोखी मानवीय क्षमताओं में से एक है, जो हमें अपने विचारों, भावनाओं और विचारों को संप्रेषित करने में सक्षम बनाती है। यह प्रतीकों की एक जटिल प्रणाली है जिसका उपयोग संदेशों को व्यक्त करने और खुद को अभिव्यक्त करने के लिए किया जा सकता है, जिससे हम दूसरों के साथ संबंध बना सकते हैं।
आज दुनिया भर में कई अलग-अलग प्रकार की भाषाएं मौजूद हैं, जिनमें से प्रत्येक की अपनी अलग विशेषताएं और बारीकियां हैं। इस लेख में, हम भाषा की परिभाषा में गहराई से उतरेंगे और यह पता लगाएंगे कि इसमें क्या शामिल है।
मनुष्य सामाजिक प्राणी है। व्यक्ति के सामाजिक जीवन का आधार भाषा है। भाषा के अभाव में सामाजिक जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है इन्हीं वजह से भाषा की उत्पत्ति हुई है।
भाषा की परिभाषा
भाषा शब्द भाष से बना है जिसका मतलब होता है बोलना यानी कि इंसान अपनी बात कहने के लिए जिन साधनों का इस्तेमाल करता है उसे भाषा कहते हैं।
भाषा उस साधन को कहते हैं जिसके जरिया इंसान बोलकर, सुनकर, लिखकर और पढ़कर अपने मन के भावों और विचारों को प्रकट करता है।
दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि जिसके जरिया इंसान अपने भावों को लिखित या मौखिक रूप में अन्य लोगों को समझा सके या दूसरों के भावों को समझ सके उसे ही भाषा कहते हैं।
भाषा परिवर्तनशील है। वक्त के साथ-साथ और जरूरत के हिसाब से भाषा का रूप बदलता है और भाषा नया रूप धारण कर लेती है।
भाषा का महत्व
किसी भी व्यक्ति के लिए भाषा बहुत ही महत्व रखती है। भाषा विचार विनिमय का प्रमुख साधन है। भाषा विचारों के आदान-प्रदान का सबसे अधिक उपयोगी साधन है। बातचीत से लेकर मानव समाज की सभी गतिविधियों में भाषा की जरूरत होती है।
नीचे दिए गए बिंदुओं के माध्यम से भाषा के महत्व को आसानी से समझा जा सकता है –
- भाषा ज्ञान प्राप्त करने का साधन है।
- भाषा मानव संस्कृति और सभ्यता के विकास का साधन है।
- भाषा आर्थिक विकास का आधार है।
- भाषा वैज्ञानिक विकास का आधार है।
- भाषा मानव विकास का मूल आधार है।
- भाषा राष्ट्रीय एकता का आधार है।
- भाषा मौलिक विचारो को संरक्षित करने का साधन है।
- भाषा भाव व्यक्त करने का प्रमुख साधन है।
भाषा की विशेषताएं
- भाषा सर्वोत्तम ज्योति है।
- भाषा समाज को एक सूत्र में बांध कर रखती है।
- भाषा सर्वशक्ति संपन्न है।
- भाषा सर्वव्यापक है।
- भाषा विराट और विश्वकर्मा है।
- भाषा का प्रवाह अविच्छिन्न है।
- भाषा परंपरागत वस्तु है।
- भाषा सामाजिक वस्तु है।
- भाषा मानव की अक्षयनिधि है।
- भाषा में कर्तृत्व, घर्तृत्व और हर्तृत्व है।
- भाषा पैतृक और जन्म सिद्ध नहीं है।
- भाषा भाव संप्रेषण का साधन है।
- भाषा अर्जित संपत्ति है।
- भाषा अनुकरण और व्यवहार से प्राप्त की जाती है
- भाषा परिवर्तनशील है।
- भाषा के उच्चारित रूप में पहले परिवर्तन होता है।
- हर भाषा की संरचना पृथक होती है।
- भाषा की धारा कठोरता से सरलता के तरफ जाती है।
- भाषा संयोग अवस्था से पृथकत्व के तरफ जाती है।
- भाषा का कोई अंतिम रूप नहीं होता है।
- भाषा सामाजिक दृष्टि से स्तरित होती है।
भाषा के कितने प्रकार होते हैं?
भाषा के तीन प्रकार हैं :-
मौखिक भाषा (Oral language)
जब हम बोल कर अपनी बातों या विचारों को दूसरा तक पहुंचाते हैं तो उसे मौखिक भाषा कहा जाता है।
जब श्रोता सामने हो तो हम मौखिक भाषा का इस्तेमाल करते हैं। मौखिक भाषा, भाषा का मूल रूप है और सबसे प्राचीन है। इसका जन्म मनुष्य के जन्म के साथ ही हुआ है।
मनुष्य जन्म के साथ ही बोलना शुरू कर देता है इसे सीखने के लिए किसी कोशिश की जरूरत नहीं होती है यह खुद ब खुद ही सीखी जाती है। मौखिक भाषा की आधारभूत इकाई ध्वनि होती है और ध्वनियों से ही शब्द बनते हैं शब्दों को वाक्यों में प्रयोग किया जाता है।
लिखित भाषा (Written language)
जब हम लिख कर अपनी बातों, भावों और विचारों को दूसरे तक पहुंचाते हैं तो उसे लिखित भाषा का कहा जाता है।
जब श्रोता सामने ना हो तो हम अपने बातों या विचारों को प्रकट करने के लिए लिखित भाषा का इस्तेमाल करते हैं। लिखित भाषा को सीखने के लिए प्रयत्न और अभ्यास की जरूरत होती है।
यह भाषा का स्थाई रूप है जिससे हम अपने भावों और विचारों को आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रख सकते हैं। इसके जरिया हम ज्ञान का संचय करते हैं।
सांकेतिक भाषा (Sign language)
जब हम अपने भावों और विचारों को दूसरे तक पहुंचाने के लिए संकेत या इशारों का इस्तेमाल करते हैं तो इसे सांकेतिक भाषा कहा जाता है।
सांकेतिक भाषा का अध्ययन व्याकरण में नहीं किया जाता है। इसके माध्यम से छोटे बच्चे या गूंगे लोग अपनी बात दूसरों तक पहुंचाते हैं।
भाषा के विविध रूप
- मूलभाषा
- क्षेत्रीय बोली
- व्यक्ति बोली
- अपभाषा या विकृत भाषा
- व्यवसायिक भाषा
- कूट भाषा
- कृत्रिम भाषा
- मिश्रित भाषा
- मानक भाषा
भाषा का माध्यम
अभिव्यक्ति का माध्यम
भाषा के माध्यम से हम ना सिर्फ अपने भावों, विचारों, इच्छाओं और आकांक्षाओं को दूसरों पर प्रकट करते हैं बल्कि दूसरों द्वारा व्यक्त भावों, विचारों और इच्छाओं को भी ग्रहण करते हैं।
चिंतन का माध्यम
कुछ पढ़े-लिखे, बोले और सुनें है इतना ही काफी नहीं होता है। यह भी बहुत जरूरी है कि जो कुछ पढ़े-लिखे, बोले और सुनें उसके आधार पर स्वयं चिंतन मनन करें। भाषा विचारों का मूल साधन है। बिना भाषा के विचारों का कोई वजूद ही नहीं है और विचारों के बिना भाषा का कोई अहमियत नहीं है।
संस्कृति का माध्यम
भाषा और संस्कृति दोनों परंपरा से प्राप्त होती है। इसलिए दोनों के बीच गहरा संबंध है। जहां समाज के क्रियाकलापों से संस्कृति का निर्माण होता है वहां संस्कृतिक अभिव्यक्ति के लिए भाषा को ही आधार के रूप में लिया जाता है।
साहित्य का माध्यम
भाषा के जरिया ही लिटरेचर अभिव्यक्ति पाता है। किसी भी भाषा के बोलने वाले जन समुदाय के रहन-सहन, आचार विचार इत्यादि का चित्र प्रस्तुत करने वाला उस भाषा का लिटरेचर ही होता है। लिटरेचर के जरिए ही हमें सामाजिक और सांस्कृतिक जिंदगी का परिचय मिलता है।
भाषा और बोली में अन्तर
हमें भाषा के बारे में ज्ञात हो गया है कि भाषा क्या है? भाषा के अतिरिक्त यहाँ हम बोली के बारे में भी जान लेते हैं कि बोली क्या है, भाषा और बोली में क्या अन्तर है?
भाषा एक विस्तृत क्षेत्र में बोली और लिखी जाती है और इसी में साहित्य की रचना होती है।
जबकि बोली किसी छोटे जगह में स्थानीय व्यवहार में इस्तेमाल होने वाली भाषा का अल्पविकसित रूप है जिसका कोई लिखित रूप या साहित्य नहीं होता है। यानी किसी विशेष क्षेत्र में साधारण सामाजिक व्यवहार में इस्तेमाल होने वाली बोलचाल ही बोली है।
Conclusion Points
इस आर्टिकल के द्वारा हमें भाषा की परिभाषा, भाषा का महत्व, भाषा के प्रकार एवं विशेषता तथा भाषा से संबंधित अनेक जानकारियां प्राप्त हुई हैं। आशा है कि यह आर्टिकल आपको पसंद आई होगी।
आपसे अनुरोध पूर्वक कहना चाहता हूं कि भाषा का शालीनता ही मनुष्य की प्रसिद्धि का मुख्य कारण होता है. इसीलिए कहा जाता है कि हम लोगों को अपने भाषा में संयम एवं शालीनता के साथ-साथ इसमें स्नेह और प्यार का उचित मिश्रण करना चाहिए.
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